Thursday, September 14, 2017

झूठी आस


( एक चिठ्ठी मोदी जी के नाम )
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झूठी आस तुम्हारी पे 
कब तक जियें हम नेता जी ( मोदी जी )
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वर्षो से धन संचय करती माँ का खजाना बँट गया
बेटों के खातों में जाकर उनका रंग बदल गया
जो माँ अब तक शान से जी थी , टुकड़ो की मोहताज़ हुयी
गौ रक्षा की बात करे क्या उनसे, जो अपने माँ को ना बख्शे
खाली झोली, सूखी छाती , खून के आंसू रोती माँ
झूठी आस तुम्हारी पे, कब तक जियेगी ऐसी माँ
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शिक्षा के मंदिर में अब ग्यान तराजू पर तुलता है
सोने की चिड़िया के खेतों मैं किसान पेड़ पर लटका है
टका सेर भाजी टका सेर खाजा किस्से कहानियों में पढ़ते थे
अपनी आँखों देख लिया अब खून- पसीना एकही मोल
भक्तों के भगवान् भी बिक गए , धर्म की ठेकदारी में
झूठी आस तुम्हारी पे, कब तक टिकेगी धरती माँ
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माँग - छीन कर लोगों से नेताओं के साम्राज्य संवर गए
जिनके सर से छत भी हट गयी , ज़िंदा वो कंकाल रह गए
पढ़ लिख कर है युवा भटकता, पुश्तैनी रोजगार भी छिन गए
अर्थ-क्रांति बनी भ्रान्ति , भ्रष्टाचारी सिरमौर बन गए
वर्तमान बिखर गया गर्द में , और भविष्य अन्धकार में
झूठी आस तुम्हारी से , हम भरपाये नेता जी ( मोदी जी )