अंधेरों से बाहर निकलने के लिए
तलाश है हम सबको एक सूरज की
क्यों ना उगाये एक सूरज हम खुद
अपने मन के आँगन में
करने को रोशन हर अँधेरा कोना
छिटका कर किरणे आत्मा विश्वास की
पर कैसे उगाये इस सूरज को
कौन सा बीज डाले, कौन सी खाद
अगर कुचले स्वप्नों के खंडित बीज डालेंगे
तो कोपल कहाँ से फूटेंगी
बचा कर रखो कोई एक स्वप्न
जो बो सके बीज अपने सूरज का
और खाद बनेंगे वही सारे
टूटे कुचले खंडित स्वप्न
जो रोपेंगे उस एक दिव्य स्वप्न को
बचा कर रखो आग ऊर्जा देने को
सूरज की तेजी के लिए
व्यर्थ कुछ नहीं है
सींचना होगा सूखी बंजर
मन -धरती को हर रोज़
रिसते रिसते भावो से
एक पतली धारा पानी की जब
कर देती सूराख पत्थर में
निरंतरता में बल है