क्या अजीब दुनिया है
जहाँ कदम कदम पर
खरीद फरोख्त का बाजार है
यहाँ रिश्ते भी बिकते हैं
और ज़मीर भी बिकते है
यहाँ सपने भी बिकते हैं
और ज़ज़्बात भी बिकते हैं
ज़िंदा इंसानो की क्या बात करें जनाब
यहाँ तो मुर्दे भी बिकते हैं
और कब्रिस्तान की धूल भी बिकती है
.
हम प्यार की बाते करते हैं
एक औरत चारदीवारी के भीतर
उँगलियों पर दिन गिनते रह जाती है
और बहार फरेबी अदाओं के एक इशारे पर
आदमी का दिल दिमाग दोनों बिक जाते हैं
एक माँ अपने लाडले की
चीख भी नहीं सुन पाती है
और ख़बरों के बाजार में
मसाला लगा लगा कर
उसकी मौत बिक जाती है
.
ये कैसे भूख है ये कैसी प्यास है
जो सुरसा के मुंह सी बढ़ती चली जाती है
क्या पैसा क्या नाम
क्या शोहरत क्या काम
यहाँ जाहिलों की बस्ती में
कलम बिक जाती है
नंगो की महफ़िलो में
इज़्ज़त की चिलम फूंकते
कामयाबी की कुंजी खरीदने को
अस्मत बिक जाती है
.
क्या न्याय करे भगवान् अब
भोचक्का बड़ा है
उसकी बनायीं दुनिया मैं हर कोई
खुद, भगवान् बना बैठा है
कौन सच्चा और कौन झूठा
कौन अच्छा और कौन बुरा
तराजू की पेंदी में छेद बहुत हैं
फैसला करेगा कौन जब
मुजरिमो के हाथों मैं
इन्साफ बिका बैठा है
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---मंजरी
27th Aug 2020