ये कैसा सफर है जिसमे
ना हमराज़ है ना हमसफ़र है
ना रास्ता है ना मंज़िल है
बस बंजर ही बंजर है
ये कैसा मौसम है जिसमे
ना बसंत है ना बहार है
ना पतझड़ है ना बरसात है
बस चक्रवात ही चक्रवात है
ये कैसा सफर है जिसमे
ना आशा है ना विश्वास है
ना अपना है ना जहां है
बस बनवास ही बनवास है
ये कैसे दिन रात हैं जिसमे
ना सूरज है ना चाँद है
ना सुबह है ना शाम है
बस अन्धकार ही अन्धकार है
ये कैसा जीवन है जिसमे
ना ख़ुशी है ना उल्लास है
ना अमृत है ना ज़हर है
बस प्यास ही प्यास है
No comments:
Post a Comment