आकाश मैं उड़ते सफ़ेद रुई के फाहे
छूट भागे थे किसी किसान के खेत से
एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मैं
घेरते आकाश को सरहद पर सैनिक से
कभी थमते , कभी हंसी ठिठोली करते
अनोखे और अदभुत आकारों को लेते
कभी दुनिया के देशों के नक्शों का बाना
या मुर्गी के चूजों का कूदना- फांदना
तभी दूसरे कोने से लो आ धमके
काले बदरंग अट्टाहस लगाते
रावण के जैसे गरजते कड़कते
बल और शक्ति का प्रदर्शन करते
निगलते बेबस सफ़ेद गोलों को
अँधेरे की चादर को दूर तक फैलाते
काले सैनिकों की टोली ने मानो
किसी को भी आज ना छोड़ने की ठानी हो
ओहो , आज फिर युद्ध होने को है
सफ़ेद-काले गोलों की गुथ्थम - गुथ्था
मोटे - मोटे लुढ़कते आंसुओं की बूँदें
फिर हिचकी लेती तेज़ फुहारों की झड़ियाँ
कड़कती बिजली और गरजते बादल
आज तो घमासान जोरों पर छिड़ी है
ढक गया आकाश श्वेत श्याम पटल से
निर्णय लिखने की बस पूरी तयारी है
पर जीत तो आखिर मैं निर्मल की होती है
वो देखो काली बदली के सीने को चीरकर
प्रफुल्लित हो नीले आकश मैं गर्व से उतरा
विजयी भाव से नाचता सफ़ेद रुई का मोर
सूरज की किरणों के सुरताल पर लयबद्ध हो
ख़ुशी की हिलोरों से झूमता - झामता
कलगी पर इन्द्रधनुष के रंगों की रेखा
पंखो पर बिखरा कर गुलाबी उजाला