रचेता ने जब इस
संसार की रचना रची
कुछ सोच कर ही उसने
फिर जोड़ी गढ़ी
फूलों को रंगों से सजा
बादल मैं पानी को भरा
धरती को बना जीवों का डेरा
आकाश को दी तारों की छटा
नर और नारी को बना
नवजीवन का सूत्र दिया
पर जब भी इस संरचना मैं
उलट फेर होने लगे
आधार की नींव हिल जाने से
सब जर्जर हो जाए
दूध और पानी रहे तो
मिल कर सोपान बने
पानी और रंग मिले तो
इन्द्रधनुष भी बन जाए
पर खून की नदियाँ बहने से
सब बदरंग हो जाए
पानी और छाँव मिले तो
मुरझाया पौधा हरा बने
खाद और सही देखभाल मिले तो
फूल और पत् ते भी उग जाएँ
पर ठूंठ बना के वृक्षों को
सब बंजर ओर जाए
प्रेम और विश्वास मिले तो
जीवन हर्षाए
साथ और सहभाग मिले तो
खुशियाँ बरसाये
पर छल , द्वेष , अभिमान रहे तो
रिश्ते धूमिल हो जाए
जीव , पशु , पक्षी , पौधे
सब एक दूजे के पूरक हैं
जो खुद को प्रबल समझ
दूसरे का तिरस्कार करे
इश्वर की इस रचना का
अपमान करे, संहार करे
तो संसार नष्ट हो जाए
चलो आज कुछ नया करे
एक बीज डाल कर प्रेम का
आशा की किरण से रोशन कर
स्नेह अमृत रस बरसा कर
रिश्तों का निर्माण करें
इश्वर से क्षमा मांग कर
नतमस्तक हो जाएँ
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