Tuesday, April 14, 2015

जल तरंग




खामोश  है  जल, खामोश  गगन  है 
मन  में पर एक उथल - पुथल  है 
क्या  आज  फिर उतरेगा  चाँद पानी  में 
अपनी चांदनी  को  छेड़ने 
या  मचलती  रहेगी  बस  यूँ ही लहरों   पर 
उचक उचक  कर चाँद को   छूने की  चाह  में 
और  भिगोती  रहेगी  खुद  अपने  आप को 
अपनी  आरज़ूओं  की जल  तरंगो  में