( श्री अब्दुल कलाम जी को समर्पित एक श्रद्धा सुमन )
एक नायक आज हमसे विदा ले चला
छोड़ चला अपने पीछे
अतुलनीय यादों का ताना - बाना
कौन कर पायेगा
इन रिक्त स्थानो की पूर्ती
कैसी विचित्र लीला है संसार की
हर आने वाले को
जाना भी जरूरी है
ये जीवन आने और जाने का
क्या बस, एक अंतहीन सिलसिला है
देह के नष्ट होने से
क्यों विचलित हैं हम
वो आत्मा जो अमर है
जन्म लेके फिर आएगी
कहीं और, किसी नए रूप में
तब खड़े होंगे नए आयाम फिर
नयी कृतियाँ, नयी स्मृतियाँ
फिर स्तंभित होंगी
जो उन पुराने सन्दर्भों को
नया दृष्टिकोण देंगी
संसार रुपी आकाश गंगा में
हर आत्मा एक अग्नि पुंज है
जो विलुप्त होने से पहले
प्रज्वलित कर जाती है
कुछ और नयी दीप मालाएं
जैसे एक वृक्ष सूखने से पहले
पिरो जाता है अनगिनत बीज
धरती के आँचल में
जनम लेने को नए पौधें
फिर उसी कर्मभूमि में
मंजरी
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Good thought
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