Monday, February 29, 2016

मैं और तुम




मैं और तुम गर साथ में होते
होती क्या , हर पल तकरार

मंडी में हर सब्जी के ऊपर
क्या होती थी खींचा-तान
तुम बैगन के गुण समझाते
मैं कद्दू का मोल बताती
अंत में लाते भिन्डी- आलू
बैगन -कद्दू वही ताज आते

मैं कहती कुछ लाना है
तुम कहते नहीं जाना है
फिर तुम मुझको खुद ले जाते
मैं कहती अब क्यों जाना है ?
लड़ते-झगड़ते जाते थे
पर हँसते-हँसते आते थे

कभी प्रेम की होती फुहार
कभी मीठी-मीठी मनुहार
कभी रूठते, कभी मनाते
एक दुसरे पर झल्लाते
पर आने वाली हर मुश्किल में
डट कर साथ खड़े हो जाते

जीवन में खट्टी -मीठी बातों के
सिरे-सिरे मिल जाते थे
कुछ बातों के मतलब होते
कुछ बेमतलब के मनमुटाव
पर इस सारी नोक - झोंक में
होते कितने अच्छे पल
मैं और तुम गर साथ में होते
होती थी हर पल झंकार

मंजरी

1 comment:

Sanjeev Kumar Dixit said...

Beautiful poem with lots of emotions and feelings .....