समेट लेते हैं जो खुद को ,
ज़रा से फैलाव के बाद ;
डर , कि बह न जाएँ ये मोती
फिर किसी सैलाब के साथ
मोम हो जाती है शम्मा -
रात भर जलने के बाद ;
कि ,हम भी पिघलते रहे
उसकी तन्हाइयों के साथ
फ़ना हो जाते जो ख्वाब
नींद से जगने के बाद ;
वो , रात भर कुछ इस तरह
उलझाने, डसने के बाद
सहमी खड़ी ये आरज़ू हैं
तेरी उसी , बेरुखी के बाद ;
कि , थमी हुयी सी धड़कने
अब तेरे रहगुज़र के साथ
लफ्ज़ बेज़ुबान हैं फिर
उस नीम सी ख़ामोशी के बाद ;
कि , गूँजते सन्नाटे हो जैसे ,
मौत की सरगोशियों के बाद
ज़रा से फैलाव के बाद ;
डर , कि बह न जाएँ ये मोती
फिर किसी सैलाब के साथ
मोम हो जाती है शम्मा -
रात भर जलने के बाद ;
कि ,हम भी पिघलते रहे
उसकी तन्हाइयों के साथ
फ़ना हो जाते जो ख्वाब
नींद से जगने के बाद ;
वो , रात भर कुछ इस तरह
उलझाने, डसने के बाद
सहमी खड़ी ये आरज़ू हैं
तेरी उसी , बेरुखी के बाद ;
कि , थमी हुयी सी धड़कने
अब तेरे रहगुज़र के साथ
लफ्ज़ बेज़ुबान हैं फिर
उस नीम सी ख़ामोशी के बाद ;
कि , गूँजते सन्नाटे हो जैसे ,
मौत की सरगोशियों के बाद
Meanings
फ़ना - destroy
आरज़ू - desires
रहगुज़र
- depart
लफ्ज़ - words
बेज़ुबान - speechless
सरगोशियों - whispering
( silent
activities)
4 comments:
Wow..this is so beautiufl...every word is showing the color of pain in this poem...very nice poem...keep it up...
Khamoshi ke baad....this poem made me khaamosh...the pic & the poem are aligned wonderfully..very nice poem...continue with your good deed.. :)
क़त्ल कर दो निगाहोसे
जरुरत नहीं जेहमत उठानेकी
न तुम्हे खंजर उठानेकी
न हमें गर्दन झुकानेकी
JUST TRIED TO COPY!
awesome poem...
Post a Comment