
कभी तुम्हे देखने का मन करता है
तो कभी तुम्हे छूने को जी चाहता है
कभी तुमसे यूँही लिपटने का मन करता है
तो कभी तुममे समां जाने को जी चाहता है
कभी तुम मेरे ख्यालों में आकर दस्तक देते हो
तो कभी हवा के झोंके से मुझे सहला जाते हो
कभी पल-पल , हर दम तुम मेरे साथ होते हो
तो कभी हर शय में ये आँखें तुम्हे खोजती हों
कभी यूँही तुम्हारे बालों में ऊँगली फ़िराऊ
तो कभी धीरे से तुम्हारे गालों को सेहलाऊ
कभी इन गहरी आँखों मैं डूब जाऊं
तो कभी उन हाथों को चूम -चूम जाऊं
कभी तुम्हारा हाथ पकड़ कर बैठी रहूं
तो कभी तुम्हारे सीने पे सर रख लेती रहूं
कभी तुम्हारा रात-दिन इंतज़ार करूँ
तो कभी तुम्हारा साया बनकर साथ रहूं
कभी बच्चों की तरह मचलने का मन करता है
तो कभी तुमसे रूठ जाने को जी चाहता है
कभी तुम्हे छेड़ने का मन करता है
तो कभी तुम्हे पूजने को जी चाहता है
कभी ये कहूं , कभी वो कहूं
तो कभी चुपचाप तुम्हे सुनती रहूं
कभी सारा जीवन संग बिताऊं
तो कभी इन बाहों मैं मर जाऊं
कभी लगता है ये कैसे होगा ?
और कभी ये ; कि क्यों नहीं होगा !
कभी रात होगी तो कभी दिन भी हॉंग़े
कभी दूर होंगे तो कभी पास भी होंगे
कभी तुम्हारे क़दमों की आहट सुनती हूँ
तो कभी तुम्हारे आने की बात जोहती हूँ
कभी रोती हूँ तो कभी हंसती हूँ
तो कभी खुद से बातें करती हूँ
1 comment:
Great poem ..with feelings so true!
..anyone struck by Cupid's arrow could relate to it.
I wish I'd a lover like her ;-)
J**
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