ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
अब इस जुर्म की कोई सजा भी मुक़र्रर हुयी है
तेरे नूर-ए -जमाल की लकीरें जो हम पे पड़ी
हमने चांदनी को खुद में समाने की ज़ुर्रत की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
अब इस जुर्म की कोई सजा भी मुक़र्रर हुयी है
तेरे नूर-ए -जमाल की लकीरें जो हम पे पड़ी
हमने चांदनी को खुद में समाने की ज़ुर्रत की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरे अक्स की चमक जो पानी में बही
हमने सागर मैं खुद को डुबाने की कोशिश की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरे ज़ीनत की कशिश जो फलक पे दिखी
हमने ज़मीन छोड़ आसमानो पे चलने की हिमाकत की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरी एक झलक जो किसी रोज़ ना दिखी
हमने अमावस के अंधेरों में उजालों की जुस्तुजू की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरा दीदार पूरा जब से हुआ
हर रात बद्र की रात हो , ये सजदा की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
हमने सागर मैं खुद को डुबाने की कोशिश की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरे ज़ीनत की कशिश जो फलक पे दिखी
हमने ज़मीन छोड़ आसमानो पे चलने की हिमाकत की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरी एक झलक जो किसी रोज़ ना दिखी
हमने अमावस के अंधेरों में उजालों की जुस्तुजू की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
तेरा दीदार पूरा जब से हुआ
हर रात बद्र की रात हो , ये सजदा की है
ए चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है
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