खो जाना चाहती हूँ इस भीड़ मैं ऐसे
की खुद अपने निशाँ भी न ढूंढ़ सकूँ जैसे
धड़कने नाम कर दी उनके
बाकी तो सासें हैं चलती जाएंगी.............
मिटा देना चाहती हूँ हर एहसास को ऐसे
की खुद अपनी खबर भी न हो सके जैसे
यादें साथ हैं उनकी
बाकी तो ज़िन्दगी है कट जायेगी .............
भूल जाना चाहती हूँ अपना नाम भी ऐसे
की साया भी पुकार न सके फिर जैसे
रूह समा गयी उनकी
बाकी तो काया है बदल जायेगी ...........
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