सोचा , कि तुम्हे एक खत लिखूं
कुछ लिखना शुरू किया
तो लगा की क्या लिखूं
मेरे अपने ?
नहीं ये नहीं लिख सकती
तुम्हारे साथ कोई और है
तुम मेरे हो ही कहाँ
तुम आ जाओ?
नहीं, ये भी नहीं लिख सकती
तुम्हारी मंज़िल कुछ और है
तुम्हारा रस्ता ये कहाँ
तुम्हारी याद में ?
नहीं,ये भी कैसे लिखूं
तुम विचलित हो जाओगे
तुम्हे उदास देख पाउंगी क्या
असीम प्यार ?
ओह ! हाथ क्यों रुक गए
कुछ लाज, कुछ जग की रुसवाई
दूजे प्रेम को शब्दों की जरूरत क्या
कोरा कागज़ ही लिफ़ाफ़े मैं
डाल कर भेज दिया
यही सोच कर
कि , तुम तो मेरे कोरे पन्ने
को भी देख कर जान जाओगे
उसमे छुपे शब्दों का अर्थ... .......
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