मौजों का सफ़र
एक समुन्दर है दर्द का
बढ़ा चला आता है
डूबेंगे या उतरेंगे
मौजों को पता होगा
तूफ़ान उठाती हुयी
जब आती है लहर
बहा ले जाती है
किनारों का सबर
टूट जाता है सरकती रेत पर
खड़े होने का गुमान
जमे पैरों को फिर से
हिला देती है लहर
ना किनारे अजीज अपने
ना मौजों का सफ़र
तैरते रहने की आजमाईश
हमें हुयी है मुक़र्रर
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