को भरने की कोशिश मैं
एक-एक को दूंढ कर लाये
ख़ुशी, प्रेम , साथ और विश्वास
सब अपने-अपने स्वरुप मैं पूर्ण
मगर जिद्दी और मगरूर
एक से सामंजस्य बिठाए
तो दूसरा निकल भागे
लचर - लचर ज़िन्दगी
और हुयी बेढंगी
एक गम मिला रस्ते मैं
बोला मुझको अपना लो
मैं तरल हूँ निराकार
हर जगह को पूरा भर दूंगा
नहीं चाहिए गम
ना आज और ना कल
गम हंसकर यूँ बोला
मत ठुकराओ मुझको
सोच लो फिर एक बार
जो गम को गले लगाया
हर कमी को उसने भर डाला
ज़िन्दगी हो गयी भरपूर
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