एक दिन मेरे मन की कचहरी में
एक बड़ा पेचीदा मुकदमा आया
एक तरफ दिल और दूजी तरफ दिमाग
दोनों मैं से एक भी ना पीछे हटने को तैयार
दिमाग कहे कि दिल मे नहीं है जरा भी सब्र
बिना सोचे समझे ले लेता है
जल्दी बाजी मैं फैसले
और फिर कर देता है उसकी नींद हराम
दिल कहे कि दिमाग बहोत है कठोर
रिश्तों के नाज़ुक मसलों पर
घंटो तक सोच विचार करने से
उसका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है
कौन सही और कौन गलत
इसका फैसला कैसे हो
बिना दलील और गवाह के
कोई भी निर्णय उचित नहीं
दिल का नंबर जैसे आया
उसने पहला वाकया बताया
अभी परसों की बात थी
पडोसी का लड़का मुस्कुरा के
लॉन्ग ड्राइव पर ले जा रहा था
दिमाग ने बीच मैं टांग अड़ा दी
अच्छा -बुरा, सोच सोच के
मेरा पत्ता साफ़ हो गया
उसकी सीट पर दूसरी लड़की
कार मैं दिल्ली घूम रही थी
मेरी लव स्टोरी शुरू होने से पहले
उसका दी एन्ड हो गया
दिमाग तैश में आकर बोला
देखो पागल दिल की बातें
वो लड़का दिल फेंक है आशिक
रोज़ नयी चिड़िया को फांसता
जान बूझ कर अनदेखा कर
दिल जज़्बातों मैं बह जाता
जल्दी मैं हां करने से
मेरा काम भी बढ़ जाता
कभी नज़र रखो,कभी करो जासूसी
कहीं टूट गया दिल फिर क्या होता
इसके रोने को सुन सुन कर
मेरे सर मैं होता दर्द
बात सही थी दोनों की
पर दिमाग ने की थी समझदारी
अभी अधूरा था न्याय
अब अगले मुवक्किल की थी बारी
अगला किस्सा दिमाग ने लाया
देखो दिल की बेवकूफी
सर पर लोन मकान का है
और लाख मना करने पर भी
चल बैठे बन श्रवण कुमार
माँ पिताजी को भारत भ्रमण कराने
और कर्ज की किश्ते बोझ बना कर
दुगनी मुझ पर हावी कर दी
क्या हो जाता रुक जाता गर
अगले साल तक टल जाता
तब तक हो सकता है शायद
कुछ और इंतजाम हो जाता
दिमाग की शातिरता पर दिल को
बड़े ज़ोर से आया गुस्सा
तू बात क़र्ज़ की करता है
माँ बाप हमारे लिए जीवन भर
कितना पल पल करते हैं
उनकी एक ख़ुशी की खातिर
ये क़र्ज़ की याद दिला मत मुझको
जैसे अब तक हुआ सभी कुछ
दुआ रही अपनों की मुझ पर
ये बोझ भी जल्द उतर जाएगा
उनकी इच्छा पूरी करने पर
मुझ में एक संतोष आ गया
शयद अबकी मुझे दिल सही लगा
दोनों के अपने मत है
कितना मुश्किल है इनके बीच
सही निर्णय का ले पाना
मैंने एक रास्ता अपनाया
बात ऐसी है दिल और दिमाग
तुम छोड़ो ये कोरट कचहरी
दोनों मिल कर आपस मैं
आउट ऑफ़ कोर्ट सुलह कर लो
सुनो जरूर इस दिल की बात
पर दिमाग की बात अनसुनी कर के
करना नहीं कोई भी बड़ा काम
...
मंजरी - 19 jan 2019
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