कभी सुनी हो फ़िज़ाओं से जैसे
कहीं छुपी हो घटाओं में जैसे
कोई अनकही , कहानी हो जैसे
कभी उड़ती तितली के जैसे
कहीं थिरकती मोरनी के जैसे
कोई राग रागिनी हो जैसे
कभी चमकते जुगनू के जैसे
कहीं तेज़ लपट के जैसे
कोई भड़की चिंगारी हो जैसे
कभी सुबह की किरण के जैसे
कभी तारों की टिम -टिम के जैसे
कोई जलता बुझता चिराग हो जैसे
कहीं छुपी हो घटाओं में जैसे
कोई अनकही , कहानी हो जैसे
कभी उड़ती तितली के जैसे
कहीं थिरकती मोरनी के जैसे
कोई राग रागिनी हो जैसे
कभी चमकते जुगनू के जैसे
कहीं तेज़ लपट के जैसे
कोई भड़की चिंगारी हो जैसे
कभी सुबह की किरण के जैसे
कभी तारों की टिम -टिम के जैसे
कोई जलता बुझता चिराग हो जैसे
कभी पत्तों पे ओस के जैसे
कहीं सीप में मोती के जैसे
कहीं सीप में मोती के जैसे
कोई बनती बिगड़ती तक़दीर हो जैसे
कभी बहती हवा के जैसे
कहीं झरनो की कल-कल के जैसे
कोई चंचल धारा हो जैसे
कहीं झरनो की कल-कल के जैसे
कोई चंचल धारा हो जैसे
कभी खुली किताब के जैसे
कहीं किसी की याद में जैसे
कोई धुंधली निशानी हो जैसे
कहीं किसी की याद में जैसे
कोई धुंधली निशानी हो जैसे
कभी गणित के सवाल के जैसे
कभी बच्चों के जवाब के जैसे
कोई अबूझ पहेली हो जैसे
कभी बच्चों के जवाब के जैसे
कोई अबूझ पहेली हो जैसे
कभी अकेली फिरकी के जैसे
किसी की पक्की सहेली के जैसे
कोई पगली सायानी अलबेली हो जैसे
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