कहाँ समझ पाओगे तुम मेरी
आवाज़ की खनक
जिस में बसी है मेरे दिल की
एक खामोश सी ग़ज़ल
कहाँ समझ पाओगे तुम मेरे
हॅसने का सबब
जिस में दबी है
मेरे जख्मों की कसक
एक खामोश सी ग़ज़ल
कहाँ समझ पाओगे तुम मेरे
हॅसने का सबब
जिस में दबी है
मेरे जख्मों की कसक
कहाँ समझ पाओगे तुम मेरी
आँखों की चमक
जिस समुन्दर में बही है
मेरे ज़ज़्बों की लहर
मेरे ज़ज़्बों की लहर
कहाँ समझ पाओगे तुम मेरा
एकाकी सा सफर
जिस रस्ते मैं गुम है
हर अपने का बिछोह
कहाँ समझ पाओगे तुम मेरे
जीने की अदा
जिसकी हर शय मैं मैंने
मौत को चुनौती दी है
मौत को चुनौती दी है
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