तुम जीत गए मैं हार गयी
तुम खुश हुए मैं आज़ाद हुयी
मन के भीतर छुपे हुए
क्रोध बैर अवसाद लिए
खुद से भी अनजान किये
उन मायावी असुरों से
फिर फूट पड़े नव प्रेम स्रोत
मुझे सराबोर करते हुए
मैं और ज्यादा निखार गयी
अंतर्मन से पहचान हुयी
कर मन को शांत और सरल
हुयी और निर्भीक और प्रबल
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