क्यूँ डरते है लोग तन्हाई के नाम से
मुझे तो अज़ीज़ है यही तन्हाई
जिस में तेरे अक्स उभरते है
और इन्ही अँधेरे कोनो में
साये एकाकार हो जाते है
अकेलेपन से बचने की कोशिश में
ना जाने कितने तरीके अपनाते है
पर ये तन्हाई की गूँज ही तो है
जिस में खुद की आवाज़ सुनाई देती है
और अपने आप से रूबरू हो पाते है
तन्हाई से जितना दूर भागोगे
ये उतनी पीछा करती आएगी
जो मुस्कुरा कर इसे गले लगा लो
तो ये मंथन के रास्ते दिखलाएगी
चेतन से अवचेतन के सेतु बनाएगी
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