Sunday, May 19, 2013

कोई


पूछते  हैं   आज मुझसे 
अब  ज़िन्दगी मैं   कोई तो नहीं ?
हँस   कर कहती हूँ तभी मैं 
ना , कोई और नहीं है अब 
नासमझ हैं लोग कितने 
जो इतना फरक भी न समझें 
कोई जब  बने खुद ज़िन्दगी 
तो उस " ज़िन्दगी"  के सिवा 
कोई और  कहाँ   है  अब 

स्वरांजली



ह्रदय की हर एक शिरा  में 
अविरल बहती रस धारा हैं 
व्याकुल मन में पीर बढाती 
सुरों के इस लय ताल में 
मद मस्त थिरकती विद्युत गति से 
संगीत की ये स्वर लहरियाँ  हैं 

कभी मौन बनी किसी वेदना को 
विचलित सी संवेदना को 
हर एक भाव को शब्द देती 
स्वरों से सुसज्जित कर के 
कंठ से मुख तक आती 
ह्रदय की ये अनुभूतियाँ  हैं 

ह्रदय से ह्रदय के सेतु को 
कच्चे सूत से बांध कर 
जीवन का संचार फूंकती 
अव्यक्त व्रती का दर्पण बन 
ईश  का वंदन करने को 
अकुलाती ये स्वरांजलियाँ  हैं  ..

Saturday, May 11, 2013

खज़ाना


जो  साथ कभी देखे थे हमने 
कुछ  ख्वाब सुनहरे रख्खे हैं 
जो साथ बिताए थे हमने 
कुछ पल  रुपहले रख्खे हैं 
 इन  मीठी यादों से भरकर 
एक खज़ाना रख्खा  है 


जीवन  के  पथ  पर चलकर 

रस मधुर सभी मैं बरसा कर 
पग प्रेम  प्यार  विशवास  सहित 
ह्रदय सभी को लगा कर 
एक दिन पहुंचेंगे उस संध्या पर 
जब रीत चुका होगा सब कुछ 


तब खोलेंगे अनमोल घरोहर 

संचित है जो वर्षों से 
फिर धीरे धीरे खरचेंगे 
बहुमूल्य निधि के संचय को 
जो मन को फिर हर्शायेगा 
खाली  दामन भर जायेगा 

तन्हाई





क्यूँ डरते है लोग तन्हाई के नाम से 
मुझे तो अज़ीज़ है यही तन्हाई 
जिस में तेरे अक्स उभरते है 
और इन्ही अँधेरे कोनो में 
साये एकाकार हो जाते है 

अकेलेपन से बचने की कोशिश में 
ना जाने कितने तरीके अपनाते है 
पर ये तन्हाई की गूँज ही तो है 
जिस में खुद की आवाज़ सुनाई देती है 
और अपने आप से रूबरू हो पाते है 

तन्हाई से जितना दूर भागोगे 
ये उतनी पीछा करती आएगी 
जो मुस्कुरा कर इसे गले लगा लो 
तो ये मंथन के रास्ते दिखलाएगी 
चेतन से अवचेतन के सेतु बनाएगी