तुझे ढूंढती हुयी बेताब नज़र
और अनायास मिलने की इक अधूरी ख्वाहिश
हर पल तेरे एहसासों का बढ़ता काफिला
और पल पल टूटने जुड़ने का लम्बा सिलसिला
धीरे धीरे खामोश होती वेदना
और नशे मैं मदहोश संवेदना
डूबती हुयी उस अंतहीन कोहरे मैं
जहाँ न दिन है न रात है
खोया हुआ एक पूरा जहां
समाया हुआ है इसमें कहीं
जिसके वजूद के मिटते निशान
बस दूर तक फैली एक सफ़ेद चादर
जो बनेगी एक दिन मेरे अंत की सहोदर