ना स्वप्न रहे ना चाह रही
सुख दुःख से सरोकार नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं
ना दिन बदले ना रात कटी
इस जीवन का अभीप्राय नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं
अंजान नगर सुनसान डगर
और मेरा ये गुमनाम सफर
अब लिखने को कुछ बचा नहीं
न शब्द बचे न भाव रहे
बस शून्य मैं बिखरा मौन रहे
अब लिखने को कुछ बचा नहीं
2 comments:
very good!
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