Friday, August 29, 2014

मौन


ना स्वप्न रहे ना चाह रही
सुख दुःख से सरोकार नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

ना दिन बदले ना रात कटी
इस जीवन का अभीप्राय नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

अंजान नगर सुनसान डगर
और मेरा ये गुमनाम सफर
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

न शब्द बचे न भाव रहे
बस शून्य मैं बिखरा मौन रहे
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

2 comments:

Anonymous said...
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Anonymous said...

very good!