These are the penned thoughts that evokes in my mind and took the shape of poems, stories and articles.....
Wednesday, March 28, 2012
...........................मन..........................
जो कहता है मुझे
वो मेरे गालों को थपथपा कर जगाएं
फिर मीठी मुस्कान से मुझे उठाएं
जो मैं चाय की प्याली लिए आऊं
तो हौले से मेरे हाथों को सहलाएं
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो चुपके से आके कानो मैं कुछ कहें
फिर नज़रों ही नज़रों मैं इशारे करें
जो मैं शर्म से सर झुका लूं
तो बेबाक हो कुछ ठिठोली करें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो अनायास ही अपने आगोश मैं भरें
फिर अधरों का रस-पान करें
जो मैं उनकी बाहों मैं कस्मसाउन
तो वो और पुरजोर चुम्बन करें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो उनकी छुअन की तपिश से
फिर पिघले बदन का सोना
जो मैं उठकर समेटना चाहूँ
तो वो उसे शोला बना दें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
~~~~~~~~~~ मैं ~~~~~~~~~~
हर पल के तिरस्कार से
पाषाण बनी तो
टूटने के विचार से
फिर जुड़ती रही मैं
अन्दर की ज्वाला से
धधकती रही तो
जलने के एहसास से
फिर बर्फ बनी में
आँखों की नमी से
बादल बनी तो
होठों की मुस्कान से
फिर बरसात बनी मैं
रात की कलोंछ से
अन्धकार बनी तो
चाँद की रोशनी से
फिर चांदनी बनी मैं
सन्नाटे की चीत्कार से
मौन बनी तो
आपके सुर- ताल से
फिर गान बनी मैं
नाकाम हसरतों से
मजार बनी तो
आपकी उम्मीद से
फिर आस बनी मैं
काँटों की चुभन से
लहुलुहान हुयी तो
प्यार की ओस से
फिर गुलाब बनी मैं
पाषाण बनी तो
टूटने के विचार से
फिर जुड़ती रही मैं
अन्दर की ज्वाला से
धधकती रही तो
जलने के एहसास से
फिर बर्फ बनी में
आँखों की नमी से
बादल बनी तो
होठों की मुस्कान से
फिर बरसात बनी मैं
रात की कलोंछ से
अन्धकार बनी तो
चाँद की रोशनी से
फिर चांदनी बनी मैं
सन्नाटे की चीत्कार से
मौन बनी तो
आपके सुर- ताल से
फिर गान बनी मैं
नाकाम हसरतों से
मजार बनी तो
आपकी उम्मीद से
फिर आस बनी मैं
काँटों की चुभन से
लहुलुहान हुयी तो
प्यार की ओस से
फिर गुलाब बनी मैं
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