जो कहता है मुझे
वो मेरे गालों को थपथपा कर जगाएं
फिर मीठी मुस्कान से मुझे उठाएं
जो मैं चाय की प्याली लिए आऊं
तो हौले से मेरे हाथों को सहलाएं
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो चुपके से आके कानो मैं कुछ कहें
फिर नज़रों ही नज़रों मैं इशारे करें
जो मैं शर्म से सर झुका लूं
तो बेबाक हो कुछ ठिठोली करें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो अनायास ही अपने आगोश मैं भरें
फिर अधरों का रस-पान करें
जो मैं उनकी बाहों मैं कस्मसाउन
तो वो और पुरजोर चुम्बन करें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
वो उनकी छुअन की तपिश से
फिर पिघले बदन का सोना
जो मैं उठकर समेटना चाहूँ
तो वो उसे शोला बना दें
ये मन ही तो है
जो कहता है मुझे
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