तराश लो तुम भी अपनी
चाहत की मूर्ती
इंसान समझा नहीं कोई
पत्थर ही सही
गढ जाउंगी जिस
शय मैं ढालोगे मुझे
चोट धीरे लगाओ
पत्थर में भी जान होती है
मूर्ती बना पूजते रहे
देवी की तरह
काश , औरत ही समझा होता
औरों की तरह
क्यों बनाया था
मुझे तोड़ने के लिए
अब , हर हिस्से से सदा आती है
तेरी सलामती के लिए
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