हर पल के तिरस्कार से
पाषाण बनी तो
टूटने के विचार से
फिर जुड़ती रही मैं
अन्दर की ज्वाला से
धधकती रही तो
जलने के एहसास से
फिर बर्फ बनी में
आँखों की नमी से
बादल बनी तो
होठों की मुस्कान से
फिर बरसात बनी मैं
रात की कलोंछ से
अन्धकार बनी तो
चाँद की रोशनी से
फिर चांदनी बनी मैं
सन्नाटे की चीत्कार से
मौन बनी तो
आपके सुर- ताल से
फिर गान बनी मैं
नाकाम हसरतों से
मजार बनी तो
आपकी उम्मीद से
फिर आस बनी मैं
काँटों की चुभन से
लहुलुहान हुयी तो
प्यार की ओस से
फिर गुलाब बनी मैं
पाषाण बनी तो
टूटने के विचार से
फिर जुड़ती रही मैं
अन्दर की ज्वाला से
धधकती रही तो
जलने के एहसास से
फिर बर्फ बनी में
आँखों की नमी से
बादल बनी तो
होठों की मुस्कान से
फिर बरसात बनी मैं
रात की कलोंछ से
अन्धकार बनी तो
चाँद की रोशनी से
फिर चांदनी बनी मैं
सन्नाटे की चीत्कार से
मौन बनी तो
आपके सुर- ताल से
फिर गान बनी मैं
नाकाम हसरतों से
मजार बनी तो
आपकी उम्मीद से
फिर आस बनी मैं
काँटों की चुभन से
लहुलुहान हुयी तो
प्यार की ओस से
फिर गुलाब बनी मैं
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