हर प्राणी इस संसार मै
एक भिक्षुक की तरह आता है
हर दर से वो कुछ ना कुछ
तो अवश्य पाता है
कहीं से ज्ञान तो कहीं से प्रेम
कहीं से मुस्कान ,तो कहीं से वात्सल्य
कहीं से धिक्कार , तो कहीं से तिरस्कार
कहीं से श्रद्धा , तो कहीं से सम्मान
हर द्वार के आगे से गुजरते हुए
सर नवाकर आगे चलता जाता है
हर चीज अपनी - अपनी तरह से
योगदान भी करती है
कुछ सीख कर , कुछ सिखा कर
कुछ पा कर , कुछ खो कर
कुछ ले कर , कुछ दे कर
कुछ जीत कर , कुछ हार कर
बस यही है मानव की जीवन यात्रा
सब कुछ अपने मैं समाहित करता है
कर्म करते हुए निरंतर आगे - आगे
बढकर आदि से अंत तक पहुंचता है
ना द्वेष , ना क्लेश
ना बैर , ना राग
ना भय , ना विस्मय
ना किंतु , ना परंतु
सिर्फ अनंत !
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