कितना बड़ा घर
कितना सारा साज -ओ -सामान
पर मेरे लिए एक कोना भी नहीं
कितना बड़ा घर
पर पूरा खाली
अब हर दर- ओ - दीवार सिर्फ मेरे लिए
कितना बड़ा शहर
और कितना शोर शराबा
पर मेरा अपना कोई नहीं
कितनी खूबसूरत जगह
पर बिलकुल सुनसान
अब हर तरफ सिर्फ ख़ामोशी ही ख़ामोशी
कितने सारे रिश्ते,
कितनी सारी तू- तू , मैं - मैं
कितनी सारी तू- तू , मैं - मैं
पर मीठे बोल कोई नहीं
कितने सारे नाते
पर सब दूर
अब कोई नहीं कुछ कहने या सुनने वाला
परिस्थिति बदल गयी
परिवेश बदल गया
पर समझा किसी ने नहीं
ज़िन्दगी बदल गयी
पर अजीब बात है
अब भी मैं वही की वही
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