These are the penned thoughts that evokes in my mind and took the shape of poems, stories and articles.....
Tuesday, April 14, 2015
Saturday, April 4, 2015
माँ मुझको एक तारा दे दे
माँ मुझको एक तारा दे दे
सबसे ऊंचा सबसे प्यारा
कौन सा वाला ??
वो माँ , वो जो ऊपर सबसे
अपनी खिड़की पर टांगूंगा
मुझसे कोई नहीं खेलता
सब बच्चे कहते तू कौन ?
नहीं तेरे पास है कोई खिलौना
न बिजली की रेल ना गाडी
न हंसने वाली गुड़िया जापानी
सबके पापा रोज़ हैं लाते
नयी नयी चीज़ें दिखलाते
मेरे पापा दूर गगन में
उनसे कह एक तारा दिलवा दे
फिर मैं सबको दिखलाऊंगा
मेरा भी कुछ मान करा दे
.
.
बेटा वो तारा तो दूर गगन पर
तू बन सकता खुद एक तारा
तेरा सुन्दर रूप सलोना
उससे बढ़कर, कर मन उजियारा
ह्रदय में रख ममता अपनों की
जीवो से कर प्यार अपार
सबकी मदद को हाथ बढा
किसी के दुःख में बनो सहारा
नर - नारी का मान करो
मीठा बोलो सत्कर्म करो
वाणी पर संयम रक्खो
क्रोध , द्वेष से दूर रहो
ज्ञान से चित्त में प्रकाश भरो
तुम चमकोगे तारा बनकर
इस धरती का उज्जवल तारा
उस तारे से बढ़कर न्यारा
.
--- मंजरी ---
Sunday, March 29, 2015
Tuesday, November 11, 2014
जगह
विज्ञान की तरक्की बड़ी होती गयी
और दुनिया छोटी होती गयी
अचानक वह बचपन की सखियों का झुण्ड
फिर से सामने आया तो जैसे
बाल सुलभ मंन प्रफुल्लित हो उठा
और यादें ताज़ा हो चिहुक उठीं
पहली तस्वीर बचपन की जिसमे
एक दुसरे से ज्यादा नज़र आने की होड़ मैं
एक दुसरे पर लदी सखियाँ
और कोने मैं चुपचाप खड़ी मैं
फिर से उस एहसास को ज़िंदा कर गयी
की उस दुनिया मैं मेरी जगह नहीं थी
चमचमाती गाड़ियों से इठलाती आती लड़कियां
और साथ मैं बैग लिए सर झुकाये ड्राइवर
वहीँ पिताजी की पुरानी पतलून से बने
बस्ते को थामे सकुचाती आती मैं
चिड़िया सी चहकती , हंसी ठिठोली करती सखियाँ
और चुप चुप सब देखती खामोश मैं
बचपन के साथ लौट आई फिर कुछ यादें
कुछ किस्से, कुछ लम्हे और संकुचित तजुर्बे
कल और आज के वक्त को जोड़ती
एक और नयी तस्वीर और वही सारी सखियाँ
अमीर घरों की बहुएं ,कुछ डॉक्टर, कुछ इंजीनियर
सफलता और जीत के परचम को छूती
आधुनिक और आला दर्जे के साजो सामान से सुसज्जित
चेहरे पर उसी गर्व के साथ मुस्कुराती
पर इस तस्वीर मैं नहीं हूँ मैं
होना मेरा जरूरी भी नहीं
जरूरी है ये बात , ये एहसास
की उस दुनिया मैं मेरी जगह
कल भी नहीं थी
और आज भी नहीं है
Friday, September 12, 2014
Rise Again
Every time I fall down and bruise my knees
mother earth envelopes me in her arms
the sky smiles above me and pat my head
the birds come near me in a friendly way
and cheer me up to subside my pain.
Every time I fall down and feels bitter
a friend comes and hug me
to lift me up and share my sorrow
to wipe away the rolling tears
and showing me again the beauty of life.
Every time i fall down and feel melancholy
God shows me in some way
that it was just the test you pass
raise your head and look around
you've once again manifested your strength
and become more stronger than before.
Friday, August 29, 2014
Monday, May 5, 2014
प्रेमिल गुलाब
ये लाल सुर्ख गुलाब और उसके किनारों पे चमकते मोती
जैसे नाज़ुक लबों पर अठखेलियां करती ओस की बूँदें
इन सिमटी हुई पत्तियों पे पानी की मचलती बूंदे
एक दुसरे को आगोश मै लेने को बेताब
पर संकोच से ठिठकी , मँद मँद मुस्काती
कुदरत की हसीं नोक - झोंक है ये
या मासूम सी शरारत है किसी जलधिराज की
.
जैसे नाज़ुक लबों पर अठखेलियां करती ओस की बूँदें
इन सिमटी हुई पत्तियों पे पानी की मचलती बूंदे
एक दुसरे को आगोश मै लेने को बेताब
पर संकोच से ठिठकी , मँद मँद मुस्काती
कुदरत की हसीं नोक - झोंक है ये
या मासूम सी शरारत है किसी जलधिराज की
.
इन् बूंदों की सरगोशियों से लजाती ये पंखुड़ियां
शर्म से बोझिल सुर्ख लाल हुई जाती हैँ
जलतरंग की ध्वनि से मधुर गान की उत्पत्ति मै
एक एक पंखुरी सहभागी बन लय बद्द हो थिरक उठतीं है
ये प्यार के मधुर स्पर्श की भाषा
मूक हो कर भी अस्फुट से शब्दों में उभर आती है
जैसे हृदय से निकलती हुई चैतन्य की प्रतीभा मै
मुखर हो इठलाती हैं , गुनगुनाती हैं
.
शर्म से बोझिल सुर्ख लाल हुई जाती हैँ
जलतरंग की ध्वनि से मधुर गान की उत्पत्ति मै
एक एक पंखुरी सहभागी बन लय बद्द हो थिरक उठतीं है
ये प्यार के मधुर स्पर्श की भाषा
मूक हो कर भी अस्फुट से शब्दों में उभर आती है
जैसे हृदय से निकलती हुई चैतन्य की प्रतीभा मै
मुखर हो इठलाती हैं , गुनगुनाती हैं
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कली से गुलाब तक आकार लेने मै
ये स्पर्श का एहसास है प्रेम कि अनुभुति का
जिसके अनुराग से मदहोश हो कर
जन्म लेती हैं कुदरत की अनमोल कृतियाँ
हर्ष और उल्लास से हिलोरे लेते हुए
प्रकृति के असीम वैभव को बढाती
सुन्दर अप्रतिम मनोभावों को समेटे
प्रेम के प्रतीक के रूप मै उजागर
जग को अनमोल सन्देश देने के लिये
रचित , एक मनमोहक प्रेमिल गुलाब
ये स्पर्श का एहसास है प्रेम कि अनुभुति का
जिसके अनुराग से मदहोश हो कर
जन्म लेती हैं कुदरत की अनमोल कृतियाँ
हर्ष और उल्लास से हिलोरे लेते हुए
प्रकृति के असीम वैभव को बढाती
सुन्दर अप्रतिम मनोभावों को समेटे
प्रेम के प्रतीक के रूप मै उजागर
जग को अनमोल सन्देश देने के लिये
रचित , एक मनमोहक प्रेमिल गुलाब
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