Tuesday, April 14, 2015

जल तरंग




खामोश  है  जल, खामोश  गगन  है 
मन  में पर एक उथल - पुथल  है 
क्या  आज  फिर उतरेगा  चाँद पानी  में 
अपनी चांदनी  को  छेड़ने 
या  मचलती  रहेगी  बस  यूँ ही लहरों   पर 
उचक उचक  कर चाँद को   छूने की  चाह  में 
और  भिगोती  रहेगी  खुद  अपने  आप को 
अपनी  आरज़ूओं  की जल  तरंगो  में 



Saturday, April 4, 2015

माँ मुझको एक तारा दे दे



माँ मुझको एक तारा दे दे 
सबसे ऊंचा सबसे प्यारा 
कौन सा वाला ??
वो माँ , वो जो ऊपर सबसे
अपनी खिड़की पर टांगूंगा
मुझसे कोई नहीं खेलता
सब बच्चे कहते तू कौन ?
नहीं तेरे पास है कोई खिलौना
न बिजली की रेल ना गाडी
न हंसने वाली गुड़िया जापानी
सबके पापा रोज़ हैं लाते
नयी नयी चीज़ें दिखलाते
मेरे पापा दूर गगन में
उनसे कह एक तारा दिलवा दे
फिर मैं सबको दिखलाऊंगा
मेरा भी कुछ मान करा दे
.
.
बेटा वो तारा तो दूर गगन पर
तू बन सकता खुद एक तारा
तेरा सुन्दर रूप सलोना
उससे बढ़कर, कर मन उजियारा
ह्रदय में रख ममता अपनों की
जीवो से कर प्यार अपार
सबकी मदद को हाथ बढा
किसी के दुःख में बनो सहारा
नर - नारी का मान करो
मीठा बोलो सत्कर्म करो
वाणी पर संयम रक्खो
क्रोध , द्वेष से दूर रहो
ज्ञान से चित्त में प्रकाश भरो
तुम चमकोगे तारा बनकर
इस धरती का उज्जवल तारा
उस तारे से बढ़कर न्यारा
.
--- मंजरी ---

Sunday, March 29, 2015

" मौसम "



तेरी याद का मौसम आता है हर रोज़ मेरे वीराने में
कुछ फूल बिछा कर जाता है मेरी उजड़ी हुयी मजारो पर

जब शाम सुनहरी ढलती है और स्याह अँधेरा भरता है 
तेरी याद के दीपक जल जल कर मेरी रात को रोशन करते है

है चाँद मैं भी वो आब कहाँ जो थाम सके मेरी नज़रों को
वो ठहर गयीं लब -ए -तस्वीर तेरी ,कहीं बोल पड़े अनजाने में


Tuesday, November 11, 2014

जगह




विज्ञान  की  तरक्की  बड़ी  होती  गयी 
और  दुनिया  छोटी होती गयी 
अचानक  वह  बचपन की  सखियों  का झुण्ड 
फिर  से सामने   आया तो  जैसे 
बाल  सुलभ  मंन  प्रफुल्लित  हो  उठा 
और  यादें ताज़ा  हो  चिहुक  उठीं 

पहली  तस्वीर बचपन की जिसमे 
एक दुसरे  से ज्यादा नज़र आने की   होड़ मैं
एक दुसरे  पर लदी   सखियाँ 
और  कोने मैं   चुपचाप खड़ी  मैं 
फिर  से  उस एहसास को ज़िंदा कर गयी 
की उस  दुनिया मैं मेरी  जगह  नहीं थी 


 चमचमाती गाड़ियों   से इठलाती  आती  लड़कियां 
और साथ  मैं बैग लिए  सर  झुकाये ड्राइवर 
वहीँ  पिताजी  की  पुरानी पतलून   से  बने  
बस्ते को थामे सकुचाती आती  मैं 
चिड़िया सी  चहकती , हंसी ठिठोली  करती सखियाँ 
और  चुप चुप सब देखती खामोश मैं 


बचपन  के साथ लौट   आई फिर  कुछ  यादें 
कुछ किस्से, कुछ  लम्हे और  संकुचित  तजुर्बे 


कल   और आज  के  वक्त को  जोड़ती 
एक  और नयी  तस्वीर  और वही सारी  सखियाँ  
अमीर घरों  की बहुएं ,कुछ  डॉक्टर, कुछ इंजीनियर
सफलता  और  जीत  के परचम को छूती 
आधुनिक  और आला  दर्जे  के साजो सामान  से सुसज्जित 
 चेहरे पर उसी गर्व  के साथ  मुस्कुराती 


पर  इस  तस्वीर मैं  नहीं  हूँ मैं 
होना मेरा जरूरी  भी नहीं 
जरूरी  है ये बात  , ये एहसास 
की   उस दुनिया  मैं मेरी जगह 
कल  भी  नहीं थी 
और आज  भी  नहीं  है 

Friday, September 12, 2014

Rise Again



Every time I fall down and bruise my knees
mother earth envelopes me in her arms
the sky smiles above me and pat my head
the birds come near me in a friendly way

and cheer me up to subside my pain.

Every time I fall down and feels bitter
a friend comes and hug me
to lift me up and share my sorrow
to wipe away the rolling tears
and showing me again the beauty of life.

Every time i fall down and feel melancholy
God shows me in some way
that it was just the test you pass
raise your head and look around
you've once again manifested your strength
and become more stronger than before.

Friday, August 29, 2014

मौन


ना स्वप्न रहे ना चाह रही
सुख दुःख से सरोकार नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

ना दिन बदले ना रात कटी
इस जीवन का अभीप्राय नहीं
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

अंजान नगर सुनसान डगर
और मेरा ये गुमनाम सफर
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

न शब्द बचे न भाव रहे
बस शून्य मैं बिखरा मौन रहे
अब लिखने को कुछ बचा नहीं

Monday, May 5, 2014

प्रेमिल गुलाब



ये लाल सुर्ख गुलाब और उसके किनारों पे चमकते मोती
जैसे नाज़ुक लबों पर अठखेलियां करती ओस की बूँदें 
इन सिमटी हुई पत्तियों पे पानी की मचलती बूंदे
एक दुसरे को आगोश मै लेने को बेताब
पर संकोच से ठिठकी , मँद मँद मुस्काती
कुदरत की हसीं नोक - झोंक है ये
या मासूम सी शरारत है किसी जलधिराज की
.
इन् बूंदों की सरगोशियों से लजाती ये पंखुड़ियां
शर्म से बोझिल सुर्ख लाल हुई जाती हैँ
जलतरंग की ध्वनि से मधुर गान की उत्पत्ति मै
एक एक पंखुरी सहभागी बन लय बद्द हो थिरक उठतीं है
ये प्यार के मधुर स्पर्श की भाषा
मूक हो कर भी अस्फुट से शब्दों में उभर आती है
जैसे हृदय से निकलती हुई चैतन्य की प्रतीभा मै
मुखर हो इठलाती हैं , गुनगुनाती हैं
.
कली से गुलाब तक आकार लेने मै
ये स्पर्श का एहसास है प्रेम कि अनुभुति का
जिसके अनुराग से मदहोश हो कर
जन्म लेती हैं कुदरत की अनमोल कृतियाँ
हर्ष और उल्लास से हिलोरे लेते हुए
प्रकृति के असीम वैभव को बढाती
सुन्दर अप्रतिम मनोभावों को समेटे
प्रेम के प्रतीक के रूप मै उजागर
जग को अनमोल सन्देश देने के लिये
रचित , एक मनमोहक प्रेमिल गुलाब