Wednesday, July 29, 2015

कर्मभूमि


( श्री अब्दुल कलाम जी को समर्पित एक श्रद्धा सुमन )

एक  नायक आज हमसे  विदा ले चला 
छोड़  चला  अपने पीछे 
अतुलनीय  यादों का  ताना  - बाना 
कौन कर पायेगा 
इन रिक्त  स्थानो की पूर्ती 


कैसी  विचित्र लीला है संसार की 
हर आने वाले  को 
जाना  भी जरूरी  है 
ये जीवन आने  और  जाने  का 
क्या बस, एक अंतहीन सिलसिला  है 


देह  के नष्ट होने  से 
क्यों विचलित  हैं हम 
वो आत्मा जो अमर  है 
जन्म  लेके फिर  आएगी 
कहीं और, किसी नए  रूप में 


तब खड़े होंगे  नए आयाम फिर 
नयी कृतियाँ, नयी स्मृतियाँ 
फिर  स्तंभित होंगी 
जो उन पुराने सन्दर्भों को 
 नया दृष्टिकोण  देंगी 


संसार रुपी  आकाश गंगा  में 
हर आत्मा एक अग्नि पुंज है 
जो विलुप्त  होने से  पहले 
प्रज्वलित कर जाती  है 
कुछ और  नयी दीप  मालाएं 


जैसे  एक वृक्ष सूखने   से पहले 
पिरो जाता  है अनगिनत बीज 
धरती के  आँचल में 
जनम  लेने को नए  पौधें 
फिर  उसी कर्मभूमि में 


मंजरी 

Saturday, July 4, 2015

Thanks Giving



Thank you to all who did not  help and  support me 
when I needed  a  companion, 
so that I  gather courage  to do on my own.

Thank  you to all  who did not  give your hand 
to stop me from stumbling to fall , 
so that I collect  strength  to  raise  myself high .

Thank you to all who did not walk beside  me
to travel the uneven roads of  life, 
so that  I enlighten my path to walk alone.