* * * Pankhuri * * *







सिर्फ  लहरा के  रह  गया आँचल
 रंग  बन  कर  बिखर  गया  कोई 
गर्दिश-ए -खून  रगों में तेज़ हुयी 
दिल को छूकर  गुज़र  गया  कोई
 फूल से खिल  गए   तसव्वुर  में  …………………



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इश्क़  एक आग का  दरिया  है सुना तो था 

झुलस  कर  एहसास  हुआ  ज़िंदा  हैं  हम  




फासले  रास्तों के  होते  हैं 
धड़कनो  से  नहीं 
रिश्ते  मन  के  होते हैं 
दायरों से  नहीं 





उसके आने से पहले भी ज़िंदा थे 

उसके  जाने के  बाद भी ज़िंदा हैं

ए इश्क़  तेरी करामाती में 

अब वो बात  ना  रही 






ग़म छुपा कर मुस्कुराने का हुनर कहाँ सबको हासिल है 

दुनिया  दीवाना समझती है जो इस  फन में माहिर  हैं 




ऊपर  से  जुड़े रहने की  ये कैसी विषम मजबूरी  है 
भीतर  से  सुलगते  रहें  और राख   भी बिखरे नहीं 




चलते चलते ये कहाँ आ गए हम 
पीछे   लौटना  मुमकिन नहीं आगे  रास्ता  बंद  है 





तुझे  तो बंद  आँखों से  महज खुशबु से जान लेते हैं 
मुझे  बिना  छुए , तेरी तरह कोई और छू  नहीं  सकता 





 

एक वो हैं की जिनको मेरे  होने  न  होने 
से फर्क कुछ पड़ता  नहीं 

एक हम हैं की हरेक ग़म उनके  सहारे 

भुलाने  की कोशिश  कर  बैठे 





दिल -ओ - खास  की दीवार फांद कर 
तू आ तो गया मेरे ज़हन में 
अब  वापसी की गुंजाइश  कहाँ 

ये रास्ते  खोले नहीं मैंने  कभी किसी  के  लिए 






खुद को ख़त्म  करने की मुहीम  आज से  चालू हुयी 
देखते  हैं मौत  जीते या की जीते  ज़िन्दग़ी 





पूजते  हैं लोग जिसको पथ्थर से ज्यादा कुछ भी  नहीं 

वजूद होता अगर कोई , तो करिश्मा क्यों कहीं  दिखता   नहीं 






हर रोज़ मरती  जा रही एक औरत की आन बान  है 
मर्द की मर्दानगी की ये  कैसी अनोखी शान  है 





क्या करोगी जननी भला इस धरती  पर  लाकर  मुझे 
हर  आँख में कलुष भरी हर  हाथ में कटारियां 






ज़रूरतें  पूरी होने  की भी  उम्मीदें  जाती रहे 
आसमान छूने  की ख्वाइश  कोई भला फिर क्या करे 








लो  आखिरी उम्मीद  भी अब तोड़  देते  हैं  हमी 
कौन कहता है कि  कुछ  करने के  काबिल  हम  नहीं 





मेरे ज़मीन आसमान तुम ले गए 
मैं शून्य में सिमट  गयी  सितारा  बनकर 







लो खुद ही तोड़ दिया... मैंने आईना

इस तरह मैं उससे... जुदा हो गया..! 








ज़िन्दगी  तेरे किस्सों  से  बनी  किताब सही 

ज़रूरी  नहीं हर  पन्ने  को  आसुओं  से  भिगोया  जाए 







ये  फकीरी  का आलम  भी  है 
और तेरी  जुस्तुजू  भी  है 
अब तू यहाँ  है की वहां है 
ये होश भी कहाँ है 





हर  गली  , हर  मोहल्ले  की ख़ाक   छान  ली 

हर  मिलने  वाले  की  जमा  तलाशी  भी ले ली 


एक तुझे ढूँढने  की  खातिर  हमने 


किस  - किस  से दोस्ती  दुशमनी  कर ली 








तेरे  वजूद  के  ज़िन्दगी  मैं  जुड़  जाने से 

फीके  से  अफ़साने  मैं  करार  आ  गया 








कितनी   मेहनत  से सजायी  थी  रंगों भरी हसीन   दुनिया 
किसी  मनचले  बच्चे  की  मानिंद  तकदीर  ने  समेट  डाली 









तेरा  नूर  भी  खुदा से  कम  नहीं है 

हर  शख्स  मैं  अब तेरा ही  साया है 






चार  दिन  की ज़िन्दगी  और  चार पल  का  साथ 
झोली  भर  के मिल गयीं  यादों  की  सौगात 





इस  उम्मीद  पर कि पिघल  जाएंगे  तेरी आंच  पा  कर 
हर  दर्द बर्फ  बन  कर  जम  गया  है आँखों  मैं 




मोहब्बत   की राहों  मैं कोई  शर्त  तो नहीं 
दूसरा  भी  तुम्हे  चाहे ये  ज़रूरी  तो नहीं 
वो  दिल  ले  के  भूल  जाए ऐसा   ही  सही 
हम  देने  पे  जो  आएं  तो  कोई  बंदिश  ही  नहीं 



वो  पूछते हैं  हमसे ,   हमारी  पसन्दीदगी  का  असबाब 
 क्या कहें की  नज़र  मैं  कोई  समाया  ही  नहीं  एक  उनके बाद 


जो चखी  भर थी  तो  आलम -ए -इख़्तियार  नहीं 
जो पी ली होती तो  खुद  खैर  करे .... 



कुछ लोगो से सवालात नहीं करते 

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते 

हम यूँ ही खामोश नहीं रहते 

गर कुछ बातों के मायने नहीं खोते 










मेरे  शब्दों  को  अब अभिव्यक्ति की ज़रुरत नहीं  पड़ती 

मौन ही है समीकरण हर मनोभाव के 

जो प्रतीक हैं उस अनंत असीम से  एकाकार होने  के लिए 

विलीन हो जाना  है मुझे जिस  में  एक  दिन सदा के लिए 






देखते  हैं गौर से  हर  राह गुज़र को 

इस आस  में की इनमे छुपा हो तुम्हारा चेहरा 





बदलते - बदलते , कितना बदल गए हम



की आइना भी अब पूछता है कि कौन हो तुम ?








होठों ने कई बार बयान किये ये अफ़साने 

कभी ज़ुबान -ए -नज़र भी समझो तो जाने

शब्दों के पेच -ओ-ख़म में उलझे रहने वालों 

ख़ामोशी के तसव्वुर को परखना सीखो








खता  नज़रों  की  थी  या  वो कुछ  नूर  ऐसा  था 
न  झपकाने  की सजा फिर  क्यों  पलकों को मुक़र्रर हुयी 






ला  रख देता है मुकद्दर  पैमाना  फिर  सामने 
ये  जानते हुए  भी की वो हमे  हासिल  ही  नहीं 








कुछ लोगो से सवालात नहीं करते 

कुछ सवालों के जवाब नहीं होते 


हम यूँ ही खामोश नहीं रहते 

गर कुछ बातों के मायने नहीं खोते








वो ढूंढते हैं आइना देखने को सूरत अपनी 

एक दफा मेरी नज़रो की तरफ देख लिया होता 





ता - उम्र इस फ़िक्र में डूबे रहे की ज़माना क्या कहेगा 

जब फुर्सत मिली तो जाना कोई देखता भी न था 

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जब मौत  का बस एक दिन मुक़र्रर है दोस्तों 

तो आओ , की हर रोज़ ज़िन्दगी का जश्न मना  ले 





एक टुकड़ा बहुत है अँधेरे में रौशनी का 

मैं जुगनू बन कर ही फैला लूंगी अपने हिस्से का उजाला

















कुछ इस तरह से तन्हाइयों को जज़्ब कर लिया 
की तन्हाई और मैं अब दिलरुबा बन गए 





इधर से उधर , बेपैंदी  के लोटे सी लुढ़कती  है ज़िन्दगी 
तल्खियां जीने  नहीं देती, जिम्मेदारियां मरने  नहीं देती 




जो वो मनाने की ज़ेहमत उठाते 
बहाने -रिझाने  की फेरहिस्त लगाते 
तो हम रूठने की अदाएं दिखाते 
मोहब्बत के पेच- ओ -हुनर आज़माते 


न दे तसल्लियाँ अब सब्र-ओ -शुकर की ए दोस्त
बहुत देख लिए तमाशे दुनिया के दर- ब- दर
कोई बैठा है जुबान-ए - शहद, छुपा आस्तीन मैं खंजर
कहीं पेशतर है तिलस्म ,इश्क़ -ए - हकीकी से अलहदा  
मंजरी - 26 May 2019


बचा क्या है तेरी रुखसती के बाद ज़हीर
जिस्म -ए- हदोद -ए -मुसलसल रूह के सिवा 
हो जाने दे फारिग अब इस से भी ए खुदा 
ख़त्म तो हो ये ,खानाबदोशी का सिलसिला 

---मंजरी- 22nd May 2020




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