Friday, December 21, 2012

" सदभाव "



मायूस होने की वजह
तुझको बहुत मिल जायेंगी
एक फूल खिला , कहीं और सही
खुशबु तुझे भी आएगी

गिरे हुए को और गिरा
क्या तुझको भला मिल जाएगा
तू झुक के जरा , फिर उसको उठा
तू और ऊपर उठ जाएगा

संहार करने से नहीं
बल - प्रदर्शित हो जाएगा
दो हाथ उठा, कुछ सृजन कर
संतुष्ट तभी हो पायेगा

हार - जीत की अंध दौड़ मैं
भाग - भाग थक जाएगा
हाथ पकड़ , सब साथ चला
संसार तभी चल पायेगा

क्रोध - लालच, बैर भाव से
क्या हासिल कर पायेगा
सप्रेम सहित , सदभाव बढ़ा
चित्त तेरा तर जाएगा

कर्कश स्वर मैं पर निंदा से
मन कलुषित हो जाएगा
मीठा बोल , मुस्कान फैला
हृदय तृप्त हो जाएगा

औरों को दुःख देने से क्या
तू सुखी रह पायेगा
अंतर्मन मैं ज्योत जगा

" आराध्य " तेरा हो जाएगा 

Saturday, December 15, 2012

Life & Death



Life is a  roller-coaster
And I’m getting along with its
Deadly  jerks
Twisty  turns
Heavy  thuds
Gruffy  bumps

Life is  a  breath - taker
And I’m gasping along with its
Untimely  setbacks
Sudden  strokes
Harsh  coercion
Drainy  pitfalls

Death is  a  final destination
And I’m looking forward to its
Loving  embrace
Peaceful  unision
Pure  rejoice
Ultimate  peace

Tuesday, December 11, 2012

नासमझ



कहाँ समझ पाओगे तुम मेरी 
आवाज़ की खनक 
जिस में बसी है मेरे दिल की 
एक खामोश सी ग़ज़ल 

कहाँ समझ पाओगे तुम मेरे 
हॅसने का सबब 
जिस में दबी है 
मेरे जख्मों की कसक 

कहाँ समझ पाओगे तुम मेरी 
आँखों की चमक 
जिस समुन्दर में बही है 
मेरे ज़ज़्बों की लहर 

कहाँ समझ पाओगे तुम मेरा 
एकाकी सा सफर 
जिस रस्ते मैं गुम है 
हर अपने का बिछोह 

कहाँ समझ पाओगे तुम मेरे 
जीने की अदा 
जिसकी हर शय  मैं मैंने 
मौत को चुनौती दी है 


Wednesday, December 5, 2012

अलबेली


कभी सुनी हो फ़िज़ाओं से जैसे 
कहीं छुपी हो घटाओं में जैसे  
कोई अनकही , कहानी हो जैसे

कभी उड़ती तितली के जैसे
कहीं थिरकती मोरनी के जैसे 
कोई राग रागिनी हो जैसे

कभी  चमकते जुगनू के जैसे
कहीं  तेज़ लपट के जैसे 
कोई भड़की चिंगारी हो जैसे 

कभी सुबह की किरण के जैसे 
कभी तारों की टिम -टिम  के जैसे 
कोई जलता बुझता  चिराग हो जैसे    


कभी पत्तों पे ओस के जैसे 
कहीं सीप में मोती के  जैसे 
कोई बनती बिगड़ती तक़दीर हो जैसे 

कभी बहती हवा के जैसे 
कहीं झरनो की कल-कल के  जैसे 
कोई चंचल धारा हो जैसे 


कभी खुली किताब के जैसे 
कहीं किसी की याद में जैसे 
कोई धुंधली निशानी हो जैसे 


कभी गणित के सवाल के जैसे 
कभी बच्चों के जवाब के जैसे 
कोई अबूझ  पहेली हो जैसे 


कभी अकेली फिरकी के जैसे 
किसी की पक्की सहेली के जैसे 
कोई पगली सायानी अलबेली हो जैसे