Sunday, June 2, 2019

ज़िन्दगी की गाड़ी




हमारी ज़िन्दगी की गाड़ी भी इन्ही दौड़ती  भागती 
दुपहिए , चोपहिये वाहनों सी नहीं है क्या ?

कोई भाग रहा है सरपट , एक्सप्रेस ट्रैन की विद्युत गति से 
बिना किसी रूकावट , पूरे नियंत्रण के साथ 
नपे तुले पड़ावों पर विश्राम करते, उत्साह और स्फूर्ति के साथ 
निर्धारित समय पर  गर्व  से मंज़िल पर  जा पहुँच 
कोई चल रहा पैसेंजर मेल की घिसट घिसट  चाल 
जिसे हर  चढ़ता  मुसाफिर चैन खींच रोक देता हो 
बुझे मन से,उसे पीछे छोड़ आगे निकलती गाड़ी को देखती ,
डाह से  जल-जल कोयले की राख का धुआं उड़ाती 

कुछ ज़िंदगियाँ मानो सड़को पर ठसाठस भरी रोडवेज की बस 
जो मजबूरियों के बोझ से आधी झुक चुकी है 
छलनी सीने के टायर की फिसफिस हंसी  
जो हर मोड़ की कील से पंचर हुआ हो और जिसे 
एक छोटे से गड्ढे से असुंतलित हो उलट जाने का भय हो 
वो कैसे मुकाबला करे उन वातनुकूलित परियों से 
जो हवा से बाते करती , सपनो की दुनिया सी रंगीन
एक निश्चित लक्ष्य की और अग्रसर है 

किसी का आसान है इतना सफर 
 कि बस दिशा निर्देश देते हुए चल रही  उनकी गाड़ी है
सिर्फ एक जुबां का इशारा  और सर झुकाता दरबान है  
गंतव्य तय, रास्ता तय , हमसफ़र तय और विजयश्री भी तय 
और कोई कर रहा है जोड़ तोड़ हर साँस के आवागमन की  
ना ठौर ना ठिकाना ,ना  भूत ना भविष्य, बस आज की चिंता मैं मग्न 
दो रोटी की जुगाड़ और मुठ्ठी भर चैन की तलाश मैं  भटकता 
सुबह से शाम कोल्हू के बैल सा ज़िन्दगी के पहिये को खींचता 

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मंजरी- 1 st  June  2019