Tuesday, October 10, 2017

दो राही


उफनते दरिया में बहते आये 
जाने कहाँ से 
दो अनजान राही 
कभी डूबते कभी उतराते 
विधि ना जानी


जो थामा हाथ 
मझधार मैं 
हौसले से ठानी 
अब बिना तूफानों से डरे 
गुज़रेगी ये ज़िंदगानी

Wednesday, October 4, 2017

1991 की डायरी


अलमारी को व्यवस्थित करते समय 
फिर मिल गयी तुम्हारी वो 
१९९१ की एक डायरी 
हाँ, तुम्हारी आखिरी डायरी
पर वह सिर्फ एक डायरी नहीं है
उसमे तुम्हारा पूरा अस्तित्व समाया है
.
पहले पन्ने पर लिखा तुम्हारा नाम और पता
हमारा घर , जहाँ आये थे तुम
आखिरी बार उस ताबूत में
खामोश और शिथिल
और फिर वो देह भी सामाप्त
और रह गए तुम बस इस डायरी में सिमट कर
.
बहुत से दोस्तों के नाम , पते, नंबर
और कुछ उनके लिखे पत्र
तुम्हारी मधुर दोस्ती के प्रतीक
शायद , उन्हें तुम आज याद ना हो
पर जीवंत है तुम्हारी दोस्ती
इन पत्रों में बखान स्मृतियों मैं
.
बहुत से बचपन के चित्र
स्कूल और कॉलेज के
डायरी के पन्नो में छुपे हुए
याद दिलाते बचपन के वो दिन
जो हमने गुज़ारे थे साथ
उन्ही गलियों और चौबारों मैं
.
बहुत से कोट्स और कविताएं
जो लिखी थी तुमने कभी
अपने मन के अनकहे भावों को
उकेर कर पन्नो में समोया था
आज भी महकते हैं ये पीले पन्ने
तुम्हारे अस्तित्व के स्पर्श से
.
बहुत से सफलता के परचम
छुए थे तुमने स्कूल और कॉलेज में
पढाई और स्पोर्ट्स के हर क्षेत्र में
हर रेस में सर्वदा प्रथम
ना जाने ज़िन्दगी की रेस से
क्यों आउट हो गए
.
आज फिर मैंने, इस डायरी को
अश्रुपूर्ण नेत्रों से, गले को लगाया है
और प्रेम से सहेज कर फिर से
रख दिया है अपनी अलमारी मैं
तुम साथ हो मेरे , अब भी
! हमेशा रहोगे !
.
तुम्हारी दीदी