Wednesday, September 19, 2018

इंटरनेट की दुनिया


ये रंगमंच की दुनिया है, यह हमारा घर नहीं है.....
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यहाँ हर किरदार एक बेहतरीन कलाकार है
कुछ कच्चे, कुछ अपने फन मैं माहिर हैं
साज-ओ-सज्जा के मुखोटों के भीतर
जाने कितने अजीब - ओ - गरीब चेहरे हैं
क्यूंकि , ये रंगमंच की दुनिया है
यह हमारा घर नहीं है।
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यहाँ की दुनिया बड़ी सलोनी है
कहीं इंद्रधनुषी सपनो का संसार है
तो कहीं जादू की छड़ी से निकले
लुभावने , मखमली एहसास हैं
पर , ये रंगमच की दुनिया है
यह हमारा घर नहीं है।
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यहाँ कृत्रिम माहौल को अनुकूल बना
माया नगरी का फैला मकड़ जाल है
यहाँ ना पहरेदार हैं, ना कुण्डी- ताला है
सौदागरों के भेष में चोरो का बोलबाला है
बाबू , ये रंगमंच की दुनिया है
यह हमारा घर नहीं है।
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किरदारों के बोल, और उनके हाव भाव
लैला - मजनू , सस्सी - पुन्नू के किस्से
यहां चाणकय भी हैं, यहाँ शकुनि भी हैं
और सबका वजूद बस पर्दा गिरने तक है
ध्यान रहे, ये रंगमंच की दुनिया है
यह हमारा घर नहीं है।
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यहाँ का आना, यहाँ से जाना
मनोरंजन तक सीमीत रखना
असल मान कर दरी बिछा कर
यहाँ रच बस के मत रह जाना
ये सिर्फ, रंगमंच की दुनिया है
यह हमारा घर नहीं है।
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Tuesday, September 11, 2018

मैं एक नदी हूँ




मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
निरन्तर बहना ही है मेरी प्रकर्ति
मत करना कोशिश ,लग मुझे बाँधने 
ना रह पाउंगी सिमट ,मैं एक घाट पर
है कर्म मेरा बस चलते रहना
पत्थरो के बीच , कंदराओं से होकर
उबाख खाबड़ रास्तों की मदमस्त नृत्यांगना
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मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
नहीं एक जगह है मेरा ठौर ठिकाना
थिरकत पाँव ,चंचल प्रवर्ती
फैली हुयी ये वृस्तृत बाहें
रच बसने को कण कण मैं
फूट रहे हैं मधुकर चश्मे
अंतरघट के प्रांगण से
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मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
जल प्रवाह का वेग समूचित
मिलता रहे गर,यूँही प्रतिदिन
हो जाउंगी एक रोज़ समाहित, सागर मैं
नहीं तो, संगृहीत हो अपने ही परिवेश मैं
सरोवर मैं परिवर्तित हो ,सूखी धरणी
मुरझे प्रसून , कुम्हले चेहरे हरषाऊँगी
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मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
बसते मुझमे कितने प्राण
सबके जीवन की अभिलाषा
प्रेम सुधा सोपान लिए
बरसत हूँ मेघा बनकर
मेरे जीवन का अभिप्राय यही है
नियति यही है ,पन्थ यही है
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मैं एक नदी हूँ ..बिना किनारे।