Saturday, January 19, 2019

मन की कचहरी




एक दिन मेरे मन की कचहरी में 
एक बड़ा पेचीदा मुकदमा आया 
एक तरफ दिल और दूजी तरफ दिमाग 
दोनों मैं से एक भी ना पीछे हटने को तैयार 

दिमाग कहे कि दिल मे नहीं है जरा भी सब्र 
बिना सोचे समझे ले लेता है 
जल्दी बाजी मैं फैसले 
और फिर कर देता है उसकी  नींद हराम 
दिल कहे कि  दिमाग बहोत है कठोर 
रिश्तों के नाज़ुक मसलों पर 
घंटो  तक सोच विचार करने से 
उसका  ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है 
कौन  सही और कौन गलत 
इसका फैसला कैसे हो 
बिना दलील और गवाह के 
कोई भी निर्णय उचित नहीं 

दिल का नंबर जैसे  आया 
उसने पहला वाकया  बताया 
अभी परसों की बात थी 
पडोसी का लड़का मुस्कुरा के 
लॉन्ग ड्राइव पर ले जा रहा था 
दिमाग ने बीच मैं टांग अड़ा दी 
अच्छा -बुरा, सोच सोच के 
मेरा पत्ता साफ़ हो गया 
उसकी सीट पर दूसरी लड़की 
कार मैं दिल्ली घूम रही थी 
मेरी लव स्टोरी शुरू होने से पहले 
उसका दी एन्ड हो गया 

दिमाग तैश में आकर बोला 
देखो पागल दिल की बातें
वो लड़का दिल फेंक  है आशिक 
रोज़  नयी चिड़िया को फांसता 
जान बूझ कर अनदेखा कर 
दिल जज़्बातों मैं बह जाता 
जल्दी मैं हां करने से 
मेरा काम भी बढ़ जाता
कभी  नज़र रखो,कभी करो जासूसी 
कहीं टूट गया दिल फिर क्या होता
इसके रोने को सुन सुन कर 
मेरे सर मैं होता दर्द 

बात सही थी दोनों की 
पर दिमाग ने की थी समझदारी 
अभी अधूरा था न्याय 
अब अगले मुवक्किल की थी बारी 

अगला किस्सा दिमाग ने लाया
देखो दिल की बेवकूफी 
सर पर लोन मकान का है 
और लाख  मना करने पर भी
चल बैठे बन श्रवण कुमार  
माँ पिताजी को भारत भ्रमण कराने 
और कर्ज की किश्ते बोझ बना कर 
दुगनी मुझ पर हावी कर दी 
क्या हो जाता रुक जाता गर 
अगले साल तक टल जाता 
तब तक हो सकता है शायद 
कुछ और इंतजाम हो जाता 

दिमाग की शातिरता पर दिल को 
बड़े ज़ोर से आया गुस्सा 
तू बात क़र्ज़ की करता है 
माँ बाप हमारे लिए जीवन भर 
कितना पल पल करते हैं 
उनकी एक ख़ुशी की खातिर 
ये क़र्ज़ की याद दिला मत मुझको 
जैसे अब तक हुआ सभी कुछ 
दुआ रही अपनों की मुझ पर 
ये बोझ भी जल्द उतर जाएगा 
उनकी इच्छा  पूरी करने पर 
मुझ में एक संतोष आ गया 

शयद अबकी मुझे दिल सही लगा 
दोनों के अपने मत है 
कितना मुश्किल है इनके बीच
सही निर्णय का ले पाना 
मैंने एक रास्ता अपनाया 
बात ऐसी है दिल और दिमाग 
तुम छोड़ो ये कोरट कचहरी 
दोनों मिल कर आपस मैं 
आउट ऑफ़ कोर्ट सुलह कर लो
सुनो जरूर इस दिल की  बात 
पर दिमाग की बात अनसुनी कर के 
करना नहीं कोई भी बड़ा काम 
... 
मंजरी - 19 jan 2019 

काल चक्र



सूखे पत्ते की खड़खड़  
मानो पतझड़ का हो गान कोई 
मत मान करो, अभिमान हरो 
वक्त बदलते झड़ जाएगा 
उजड़ी डाल  पे बैठा  पंछी 
शंका से भर जाएगा
ले कर अपने नन्ने मुन्ने 
रैन बसेरा, उड़ जाएगा 

यह सीख भली है पतझड़ की 
गर जान ले जो  इंसान कोई 
घर का मुखिया , सिरमौर बड़ा 
बांधे सबको एक कड़ी 
स्नेह आशीष रखे छोटों पर 
दंभ -  क्रोध से उपजे बैर 
कर्म तुम्हारे आरी बन कर 
काट ना दे रिश्तों की डोर 

ये जो फेरहिस्त है मौसम की 
बस काल चक्र है सृष्टि का 
जो औरों को तुम देते हो 
वह वापस तुम ही पाओगे 
चाहे विधि अलग हो, भान जुदा 
है स्वर्ग यहीं, है नर्क यहीं 
मन की गठरी हलकी रखना 
बोझ तुम्हारे सर आएगा 

विचित्र बड़ा है नियम प्रभु का 
हर बात के लेखे जोखे हैं 
तुम देख रहे हो आज का जीवन 
बीते कल को भूल भले जा 
पिछली  गलती की सजा 
अगली पीढ़ी तक जाएगी
जो समय के रहते संभल गए तो 
क्षमा -याचना मिल जायेगी 

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मंजरी-  18 jan 2019 

Tuesday, January 1, 2019

नया साल


ये साल जाएगा और नया साल आएगा
पर सच कहो तो भला क्या बदल जाएगा ?
.
एक तरफ कड़ाके की ठण्ड मैं सिकुड़्ता
छेद वाले पैबंद लगे झीने कुर्ते से
हड्डियों के ढाँचे को बमुश्किल ढंकता
सड़क के किनारे बर्फीली हवा से
जलते बुझते अलाव के धुंए में
आँखें मिचमिचाता, दाँत किटकिटाता
कैलेंडर में तारीखें बदलने से अनजान
कुत्ते को सिरहाने बना ,गुड़मुड़ी गठरी बना
एक दूसरे के बदन को गर्मी देते
फुटपाथ पर , दो मुफ़लिस
जान बचाते, रात गुज़ारते
क्या ये अलाव सुबह होने तक
इनका साथ दे पायेगा ?
.
दूसरी तरफ हाथों में हाथ डाले
आला दर्जे के होटलों और रिसॉर्ट्स में
तेज म्यूजिक पर थिरकते
एक दुसरे से अनजान एक रात के साझेदार
शराब के फव्वारे में नहाते
नाना प्रकार के व्यंजनों के ढेरो पर
नुक्ताचीनी कसते ,चख चख कर फेंकते
नए साल के आगमन का जश्न मनाते
और बची हुयी जूठन को
रसोईघर के पिछवाड़े से उठाकर
गपागप ठूंसते भिखमंगे बच्चे
क्या ऐसा खाना उन्हें हर रोज़
नसीब हो पायेगा ?
.
और तीसरी तरफ, देश की सीमा पर
माइनस तीस डिग्री के टेम्प्रेचर को
दरकिनार रख, सभी अपनों से दूर
हम सबकी हिफाज़त के लिए
रोज़ दर रोज़, अपनी जान की
परवाह किये बिना
गुमनामी के अंधेरों से जूझते
ग़म और ख़ुशी की सौगात से परे
रात भर आँखें फाड़े चौकस
मुस्तैदी से पेहरादरी करते
देश के बहादुर सिपाही
क्या उनको इन कुर्बानियों का
सिला मिल पायेगा ?
.
मंजरी