Saturday, December 24, 2016

बंधन


रोज़ सुबह उठते ही मेरा उसको रोटी 
खिलने का नियम है 
और वो भी बेसब्री से मेरा इंतज़ार करता है 
कभी घर के पिछवाड़े दालान की मुंडेर के पास,
तो कभी दालान के चबूतरे पर बैठ कर
दरवाजा खोलते ही टकटकी बांधे
उसकी नज़रें मुझे ही देखती रहती
कोई कारणवश कभी देर हो जाए
तो बेसब्र हो कर कमरे की चौखट पर आकर
मूक हाजिरी दे देना उसका
बिना एक शब्द बोले उसका मौन इंतज़ार
और फिर भी मैं, ना ध्यान दूँ तो
मेरे आगे पीछे मंडराना उसका
जब तक की मैं उसे रोटी न खिला दूँ
रोटी डालते ही चोंच में जल्दी जल्दी कुछ टुकड़े दबाकर
पास खड़े घने कटहल पे पेड़ पर उड़ जाना
शायद अपने बच्चो को खाना खिलाकर
फिर आकर रोटी बटोरने लग जाना
अब मैं भी ध्यान रखती हूँ उसका
रात को ही एक रोटी उसके नाम की
अलग से डब्बे मैं बनाकर रखती हूँ
और सुबह उठकर
सबसे पहले उसको चुगाती हूँ
एक अलग ही अनुभूति है ये भी
सोचती हूँ क्या रिश्ता है
इस कौवे का मुझसे
प्रेम का, विश्वास का, अपनत्व का
.
सच में कुछ बंधन ऐसे होते हैं
जो बिन बांधे बांध जाते हैं 

Friday, December 9, 2016

हम सफर


रेलगाड़ी की दो पटरियों को देखकर 
अचानक एक ख्याल मन में कौंधा 
कि क्या हम भी इन्ही दो पटरियों की तरह नहीं हैं 
ज़िन्दगी के रास्तों पर निरंतर चलते हुए
ना ज्यादा दूर, ना और नज़दीक
बस एक निश्चित दूरी को बनाये हुए
चलते जा रहे हों दिन रात
नए मोड़ों से गुज़रते
मंज़िल से बेखबर
किसी पड़ाव पर ज़रा थमते
फिर अनजानी राहों पर आगे बढ़ते
ग़म ये नहीं की रास्ता क्या है
ना फ़िक्र ये की मंज़िल क्या होगी
ख़ुशी क्या ये कम नहीं है कि
सफर में हम साथ तो हैं। ...... 


Sunday, October 30, 2016

स्कूल के वो दिन



याद हैं स्कूल के दिन वो सुहाने 
पीटर्स और पैटरिक्स के अलबेले ज़माने 

दो पडोसी , अपनी अपनी चारदीवारी में सिमटे 
फिर भी एक दूसरे की हर  बात की खबर रखते 
.
वो क्लास में सर की कुर्सी पर रबर की छिपकली रखना 
फिर सजा के तौर पर पूरी क्लास का एकता से खड़े रहना 
वो स्कूल बेल पर चुपके से च्विंगम चिपकाना 
और छुट्टी से दस मिनट पहले ही घंटी का बज जाना 
.
वो इंटरवल  में भेल पूरी की लंबी - लंबी लाईने 
और एक दूसरे के टिफ़िन को अधिकार से खाना 
वो खुस्के के चिप्स और आइस क्रीम का कार्नर 
और कार्नर के अड्डे से सबकी गतिविधियों पे नज़र रखना 
.
वो स्पोर्ट्स की तैयारी में जी जान से जुटी लड़कियां 
कभी मार्च पास्ट , योगा और शॉर्ट्स में जिमनास्टिक्स 
वो पीटर्स के लड़कों का बाउंड्री वाल पे चढ़ना 
और पेड़ों में छुपकर हमारे ग्राउंड में झांकना
.
वो पीटर्स और पैटरिक्स का सांझा जालीदार दरवाज़ा 
और उसमे से आर पार होती हुयी चिठ्ठियाँ 
वो लैला और मजनुओं के किस्सों का राज़दार 
दो स्कूलों के बीच की सीमा रेखा का जंगला 
.
वो बायोलॉजी एक्सपेरिमेंट का तुक्का लगाना 
और माली से तुड़वाये गए हुए फूलों का जानना 
वो केमिस्ट्री लैब में कुछ ना समझ आना 
और चख - चख कर स्पेसिमेन का नाम बताना 
.
वो पी टी सर की इंग्लिश , तो मिस पाई की कैट वाक 
और नागर सर का पेट तो मिस रस्तोगी का वेट 
हर टीचर के जुदा थे अंदाज़ अपने अपने 
और उन पर होती चर्चा, वो मसालेदार टिप्पड़ियां 
.
वो ग्राउंड के पीछे बनी हुयी कब्रे 
और घूमते हुए भूतों के डरावने किस्से 
वो छेड़ना , वो सताना , वो रूठना- मनाना 
और फेयरवेल के बाद बिछडते हुए रोना 
.
कैसे थे स्कूल के दिन वो सुहाने 
काश फिर से लौट आये वही पुराने ज़माने 

Tuesday, October 4, 2016

हाशिया


चलते चलते ज़िन्दगी के रास्तों में
अनगिनत लोग मिलते जाते हैं
कुछ बीच सफर में छूट जाते हैं 
कुछ हमसे आगे निकल जाते हैं
कुछ ठिठक कर पीछे रह जाते हैं
किसी से आगे बढ़ने की होड़ में
हम भागते हैं , गिरते हैं सँभलते हैं
तो किसी के साथ आने की ललक में
बार बार पीछे मुड़ कर देखते हैं
कभी हाथ बढ़ाते हैं तो कभी
रुक कर इंतज़ार करते हैं
आज बरसों के इस सफर के बाद
अपने साथ चलते इस कारवां को
देख कर ये खयाल आया
की क्यों न हाशिये पे रख के ज़िन्दगी को
फिर से संवारा जाए
वो कौन हैं जो मेरे निकटतम दायरे में हैं
और वो कौन हैं जो
आड़े तिरछे तरीके से अंजानो की तरह
बस जुड़े हैं कुछ कटे - कटे से
फिर से समझा जाए रिश्तों को
एक नयी परिभाषा के साथ
और खींचा जाए मन का दायरा
और दायरे के अंदर
मेरे अपने
.
हाशिया =  Margin / Border )

Tuesday, September 27, 2016

मायने


क्यों ज़िन्दगी के मायने
इतने पेचीदे हो गए हैं 

कि सुलझाने में उलझनों को
हम और उलझ गए हैं
.
यकीन और भाईचारे
कदमो की धूल चट कर
मौकापरस्तों के आंगन में
ज़मींदोज़ हो गए हैं
.
जर, जोरू , जमीन के किस्से
सरेआम बेपर्दा हो कर
मोहल्ले के चौराहों पर
इश्तेहार बन गए हैं
.
खंजर की नोक पर टिकी है
रिश्तों की नब्ज़-ए -जान
एक चूक हुयी जरा सी
और खून बह रहे हैं
.
एक दूसरे पर फेंकते
इल्ज़ामात के शहतीर
वकीलों की फाइलों में
ज़ज़्बात रो रहे हैं
.
अपनी ही बेटियों को
बाजार में उतारते
दलाल के भेष में वालदेन
बोली लगा रहे हैं
.
ज़िन्दगी के मायने
कितने दहशतगार हो गए हैं
आदम-ए -परिवेश में
अब हैवान रह रहे हैं 

.

Meanings
मायने – sense / meaning
पेचीदे – complicated
ज़मींदोज़ - burried
नब्ज़-ए –जान – flow of  life
इल्ज़ामात - Blames
शहतीर – poisoned arrows
ज़ज़्बात – feelings
दहशतगार – fearful
आदम-ए –परिवेश – disguise of men

हैवान - devil




बेबाक




उस नज़र से पहले किसी को देखा नहीं था
जो देखा तो ये हुआ की देखते रह गए

निगाह थम गयी बेशर्म , बेखोफ होकर
होठ सिल गए यूँ होश-ओ-हवास खोकर

ना फ़िक्र जहाँ की न रुसवाइयों की चिंता
दिल की इस बेबाकी पर हम हैरान रह गए



ज़िद





रंग सारे तूने  नज़ारों में बिखेर कर 
बचे हुए काले रंग से मेरी ज़िन्दगी रंग  दी 

तू करता रह  स्याह इसे और भी ज्यादा 
मैं जल जल के इसे रोशन करती रहूंगी 

तू डालता रह पत्थर  राहों में रोज मेरे 
मैं जोड़ जोड़ उनको स्तम्भ बना लूंगी 

यही ज़िद है अगर तेरी अब मेरे खुदाया 
तो मैं भी अब तुझको शिकस्त दे के  रहूंगी 

Sunday, September 25, 2016

सुनीता



Dedicated to my dearest friend Sunita
आओ आज तुम्हे हम बताये की कौन है सुनीता
.
सादगी पसंद, हंसमुख, ताजगी से भरी 
सुबह सवेरे तुम्हे जगाती ओस की बूँद है सुनीता
जीवन के पथ पर आगे बढ़ने का हौंसला देती
एक मजबूत मील का पत्थर है सुनीता
.
सबको अपने साथ लिए मुस्कुराती हुयी
मिठास से भरी कोयल की बोली है सुनीता
दोस्तों में खुशियां बांटती , हमसफ़र
गलतियों को माफ़ करती मोम की डली है सुनीता
.
प्यार और विश्वास के डोर को मजबूत करती
रंगीन धागों से बनी तस्वीर है सुनीता
इरादों की पक्की , दिल से सच्ची
संगीत की मधुर तान है सुनीता
.
और अर्नलगं बातें करने वालों के लिए
ज़िन्दगी का करारा सबक है सुनीता

( अर्नलगं - बेमतलब, फ़ालतू / unnecessary, meaningless ) 

Tuesday, August 23, 2016

The Moon and me


In the dark night , sitting alone
when i was peeping out of the window
I heard some tapping above my head
Oh! and what I see
The blue and round shining moon
gazing and smiling straight at me
putting a questioning glance at me
"why are you in a pensive mood ?"
.
I tried to manage a faint smile
nothing...nothing....just like that
Really nothing.....just like that
A drop of water fell on my knees,
was it mine from the moist eyes
or the wind has brought
carrying far from the altair -
my lost star ; somewhere in the sky
.
My eyes searched again to see
but to found just the star less sky
And the moon above the clouds
with his silent murmurs in my ears
"The clouds are high to hide the stars.
Till the rain cleanses the sky,
I'll be there beside your window
Giving company to each other."
.
"But why you are here
and not in the sky ?"
He whispered softly barely to hear
"Shhh shh ! ; I was running to hide
away from the clouds
when i heard your heart moan
I thought you need a company
Can you hide me in your heart ?"
.
I opened up my both the arms
to envelope the moon
within my bosom
to fill the empty space of heart
and moon begins to cast its spell
spreading love and peace within
soothing down inflated senses
bringing cheer to my lips.

वक़्त



तेरी रुखसती के बाद वक़्त रुक गया है 
ना  दिन याद ना  घंटे , ना महीने ना साल 
बस वो एक लम्हे पर अटकी हैं 
मेरे नज़रों की सुइयां 
उस दीवार पर   लटकी 
बंद घडी की तरह 
इस  इंतज़ार में 
की तुम पलट कर आ जाओ 
और मेरी बिखरी हुयी ज़िन्दगी को
 फिर से तरतीब -ए -सुकून आ जाए 

Thursday, August 4, 2016

जिद्दी








कल फिर उसे मैंने रंगे हाथों पकड़ा था
ऊपर के कमरे के स्टोर रूम से 
और मेरी आवाज़ सुनते ही
घबरा कर सरपट भागी थी
आज फिर वो दबे पाँव आयी है
मुझसे नज़रे चुराते चुराते
कमरे की अलमारी के बगल में
खिड़की के परदे के पीछे छुपी है
शायद इंतज़ार है एक मौके का
की कब मैं बाहर जाऊं
और वो चुपचाप ऊपर चढ़ जाए
.

हैरान हूँ मैं उसकी दिलेरी पर
मेरी इतनी कड़ी पहरेदारी के बावजूद
हर रोज़ किसी न किसी तरह
वो अपनी कोशिश में कामयाब हो जाती है
और अंदर आने के रास्ते ढूंढ निकालती है
ये उसकी लगन है, या न हार जाने की जिद
हर बार एक नयी उम्मीद लिए
अमरुद के पेड़ से छलांग लगाते हुए
किसी अधखुली खिड़की,
या दरवाजे की ओट से घर के अंदर
फिर दाखिल हो जाती है
.
मुंह में रुई का फाहा दबाये
एक घरोंदे को बंनाने का अरमान लिए
मुझे रोज़ यही प्रेरणा देने
की कोई कितने भी रोड़े अटकाता रहे
मंज़िल तक पहुँचने की चेष्टा में
प्रयासरत आगे बढ़ते ही रहे
बिना हार माने, दृढ़ निश्चय के साथ
चाहे रास्ते बदल बदल कर ही सही
एक रास्ता बंद हुआ तो क्या
कहीं कोई दूसरी खिड़की
या दरवाजा फिर खुला मिलेगा

.
वो मेरी गुरु , एक प्यारी सी
भूरी - काली, चंचल , जिद्दी गिलहरी ।

Monday, April 11, 2016

सुखन -ए -शम्मा








शब-ए -रहगुज़र में आसान है क़दमों का सफर 

एक सुखन -ए -शम्मा से रोशन है क़ायनात मेरी

Monday, February 29, 2016

मैं और तुम




मैं और तुम गर साथ में होते
होती क्या , हर पल तकरार

मंडी में हर सब्जी के ऊपर
क्या होती थी खींचा-तान
तुम बैगन के गुण समझाते
मैं कद्दू का मोल बताती
अंत में लाते भिन्डी- आलू
बैगन -कद्दू वही ताज आते

मैं कहती कुछ लाना है
तुम कहते नहीं जाना है
फिर तुम मुझको खुद ले जाते
मैं कहती अब क्यों जाना है ?
लड़ते-झगड़ते जाते थे
पर हँसते-हँसते आते थे

कभी प्रेम की होती फुहार
कभी मीठी-मीठी मनुहार
कभी रूठते, कभी मनाते
एक दुसरे पर झल्लाते
पर आने वाली हर मुश्किल में
डट कर साथ खड़े हो जाते

जीवन में खट्टी -मीठी बातों के
सिरे-सिरे मिल जाते थे
कुछ बातों के मतलब होते
कुछ बेमतलब के मनमुटाव
पर इस सारी नोक - झोंक में
होते कितने अच्छे पल
मैं और तुम गर साथ में होते
होती थी हर पल झंकार

मंजरी

Thursday, February 18, 2016

एकभूत



बिखर जाने दो इन हवाओं में 
की समन्वय हो जाऊं 
सृष्टि के कण कण से,
और एकभूत हो जाऊं
 परम ब्रह्म में ...... 

तुलसी




हर घर मैं एक तुलसी की ज़रुरत है 

मंजरी को तो चहुँ और बिखरना ही होगा 


रोपने को प्रेम और विश्वास का पौधा 


मंजरी को तो धरती में रमना ही होगा

Monday, January 25, 2016

बहती हवा के संग






चुरा के कुछ रंग फूलों के चुपके से
कुछ टुकड़े उन टूटे सितारों के लगा कर
फिर निकल पड़ी मैं अपनी चुनरी को सजा कर
हवा के संग बहती , बतियाती- मुस्काती
अपनी ही किसी धुन मैं मगन , मांग के चहक 
थोड़ी सी, उडते पंछियों से उधार। ...