Thursday, March 23, 2017

भीगी - भीगी होली



अर्शी , ओ अर्शी 
मेरी आवाज़ कानो मैं पड़ते ही 
ढाई साल की नन्ही अर्शी माँ का हाथ खींचते हुए आयी 
जल्दी चलो माँ, आंटी बुला रही हैं
बगल के घर के पिछवाड़े का दरवाजा खुला
और दोनों घरों के दालान के बीच बनी
दो फुट की दीवार के पास आकर
नन्ही अर्शी कौतहुल से मुझे देखने लगी
.
मैंने जैसे ही गुझिया, दही वड़े
और पूरी आलू से सजी प्लेट को
" हैप्पी होली अर्शी" कहते उसके सामने बढ़ाई
अर्शी का चेहरा दही वड़े की तरह चमक उठा
और उसके चेहरे की मुस्कराहट मैं बिखरते
चटनी, सोंठ, और मसाले के रंग
और उन सारे रंगों की छटा से रंगीन होता
मेरे मन का हर कोना - कोना
.
आज इतनी सारी चीजे आंटी
हां , आज होली है ना बेटा अच्छी तरह से खाना
और उसके बाद ये ठंडाई भी पी लेना
नन्हे हाथों से गिलास थामते अर्शी के हाथ
हर रोज़ के रोटी और अचार की जगह
आज इतने सारे व्यंजन
माँ - बेटी के गद -गद ह्रदय से बरसते भाव
मुझे पूरा सराबोर कर गए
.
और इस तरह से मनी मेरी
इस बार की भीगी - भीगी होली,
एक सार्थक होली।