Monday, March 1, 2010

चाँद की तमन्ना


ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है 
अब इस जुर्म की कोई सजा भी मुक़र्रर हुयी है 

तेरे नूर-ए -जमाल  की लकीरें जो हम पे पड़ी 

हमने चांदनी को खुद में समाने की ज़ुर्रत की है 
ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है 

 तेरे अक्स की चमक जो पानी में बही 
हमने सागर मैं खुद को डुबाने की कोशिश की है
 ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है 

तेरे ज़ीनत की कशिश जो फलक पे दिखी 

हमने ज़मीन छोड़ आसमानो पे चलने की हिमाकत की है 
ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है 

तेरी एक झलक जो किसी रोज़ ना दिखी 

हमने  अमावस के अंधेरों में उजालों की जुस्तुजू की है 
ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है

तेरा दीदार पूरा जब से हुआ 

हर रात बद्र की रात हो , ये सजदा की है 
ए   चाँद तुझे पाने की तमन्ना की है  



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