Friday, February 18, 2011

मंज़िल






















क्यों सासें रुक जाती नहीं 
क्यों ज़िन्दगी थम जाती नहीं 
शायद अभी कुछ जीना बाकी है ..............

क्यों मैं रुक जाती नहीं 
क्यों मैं झुक जाती नहीं 
क्यों मैं थक जाती नहीं 
शायद अभी कुछ करना बाकी है ..............

क्यों मैं डर  जाती नहीं 
क्यों मैं मान जाती नहीं 
क्यों मैं हार जाती नहीं 
शायद अभी कुछ   जीतना बाकी है ..............

क्यों हम मिल पाते नहीं 
क्यों कुछ कह पाते नहीं 
क्यों कुछ कर पाते नहीं 
शायद अभी कुछ इम्तेहान बाकी है ..............

क्यों सपने ख़त्म होते नहीं
 क्यों बेकरारी थमती नहीं 
क्यों जज़्बे काम होते नहीं 
शायद अभी कुछ अरमान बाकी हैं ..............

-------------------------------------
अभी मंज़िल पर पहुंचना बाकी है 
अभी तुमसे मिलना बाकी है 
अभी कुछ सुनना  बाकी है 
अभी कुछ कहना बाकी है 
अभी सीने से लगना बाकी है 
अभी तेरा बहकना बाकी है 
अभी मेरा लरजना बाकी है 
अभी अपना हद से गुज़रना बाकी है ..............

No comments: