Saturday, May 5, 2012

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खो जाना चाहती हूँ इस भीड़ मैं ऐसे 
की खुद अपने निशाँ भी न  ढूंढ़ सकूँ जैसे 
धड़कने नाम कर दी उनके 
बाकी तो सासें हैं चलती जाएंगी.............


मिटा देना चाहती हूँ हर एहसास को ऐसे 
की खुद अपनी खबर भी न हो सके जैसे 
यादें साथ हैं उनकी 
बाकी तो ज़िन्दगी है कट जायेगी .............


भूल जाना चाहती हूँ अपना नाम भी ऐसे 
की साया भी पुकार न सके फिर जैसे 
रूह समा गयी उनकी 
बाकी तो  काया है बदल जायेगी ...........


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