Monday, October 22, 2012

सफर



ये कैसा सफर है जिसमे 
ना  हमराज़ है ना हमसफ़र है 
ना  रास्ता है  ना  मंज़िल है 
बस बंजर ही बंजर है 

ये कैसा मौसम है जिसमे 
ना बसंत है ना बहार है 
ना पतझड़ है ना बरसात है 
बस चक्रवात ही चक्रवात है 

ये कैसा सफर है जिसमे 
ना आशा है ना विश्वास है 
ना अपना है ना जहां है 
बस बनवास ही बनवास है 

ये कैसे दिन रात हैं जिसमे 
ना सूरज है ना चाँद है 
ना सुबह है ना शाम है 
बस अन्धकार ही अन्धकार है 

ये कैसा जीवन है जिसमे 
ना ख़ुशी है ना  उल्लास है 
ना अमृत है  ना  ज़हर  है 
बस प्यास ही प्यास है 


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