Friday, August 16, 2013

मौजों का सफ़र



एक  समुन्दर   है  दर्द  का 
बढ़ा   चला  आता  है 
डूबेंगे  या  उतरेंगे 
मौजों  को  पता  होगा 
तूफ़ान  उठाती  हुयी 
जब  आती  है लहर 
बहा  ले  जाती  है 
किनारों  का सबर 


टूट  जाता है सरकती  रेत  पर 

खड़े   होने   का  गुमान 
जमे  पैरों को फिर  से 
हिला  देती  है लहर 
ना  किनारे   अजीज  अपने 
ना  मौजों  का सफ़र 
तैरते  रहने  की  आजमाईश 
हमें  हुयी  है  मुक़र्रर 

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