Thursday, December 19, 2013

हार न मानो !



अंडे से अभी अभी निकला छोटा सा कीड़ा 
डगर मगर डगर मगर पेड़ की टहनी पर 
गिरता सम्भलता चला जा रहा था 
कि आकाश मैं उड़ती तितली को देखा 
एक तीव्र लालसा मन मैं जागी 
ऊंचे गगन के बादल को छूने की ठानी 
पर पँख न होने की विषम  थी परेशानी 
कोशिश करने से शायद हो सम्भव 
यही सोच कर उलटे लटक कर 
काया को दिए अनगिनत झटके 
पाँव फिसला और जोर से गिरा 
दर्द और दुःख मैं आंसू भी निकले 
पर हिम्मत न हारा और फिर से लटका 
कई कोशिश करने पर भी मिली न सफलता 
थक कर फिर से लगा शक्ति जुटाने 
नींद से जागा तो हुआ और हैरान 
कैसे क़ैद हुआ इस दायरे मैं 
पल भर को लगा कि अब सारी उम्मीदें ख़त्म 
अब कभी नहीं होंगे पूरे उसके सपने 
हाथ पैर मारने से भी क्या होगा 
मन मार कर शिथिल थी काया 
ये अंत है अब हर कोशिश का 
पर अचानक फट गया खोल 
और उग गए नए पंख 
अब कौन रोक सकता है उसकी उड़ान 
ख़ुशी कि हिलोरों मैं झूम उठा मन 
और चल पड़ा अपनी मंज़िल कि ओर 


क्या यही नहीं है हम सबकी भी गाथा
हर मुश्किल पर रुकना- थमना
कोशिशों की नाकामी पर आंसू बहाना
क्यूँ छोड़े उम्मीदों का दामन
पूरी होगी एक दिन वो कामना
जीत के बस एक कदम पहले
हार न मानो !
हार न मानो !

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