Friday, December 9, 2016

हम सफर


रेलगाड़ी की दो पटरियों को देखकर 
अचानक एक ख्याल मन में कौंधा 
कि क्या हम भी इन्ही दो पटरियों की तरह नहीं हैं 
ज़िन्दगी के रास्तों पर निरंतर चलते हुए
ना ज्यादा दूर, ना और नज़दीक
बस एक निश्चित दूरी को बनाये हुए
चलते जा रहे हों दिन रात
नए मोड़ों से गुज़रते
मंज़िल से बेखबर
किसी पड़ाव पर ज़रा थमते
फिर अनजानी राहों पर आगे बढ़ते
ग़म ये नहीं की रास्ता क्या है
ना फ़िक्र ये की मंज़िल क्या होगी
ख़ुशी क्या ये कम नहीं है कि
सफर में हम साथ तो हैं। ...... 


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