Wednesday, April 12, 2017

ख्वाहिशें





ख्वाहिशें सिमट कर रह जाती हैं
सहमी हुयी सी, .... अधूरी सी
आवश्यकताओं और अनावश्यकताओं के 
भंवर जाल में फंस कर
कसमसाती सी ....बेबस सी
बस कल और आज की उम्मीद मैं
इंतज़ार की घड़ियाँ गिन गिन कर
पूरी होने की आस पथरीली आँखों में लिए
सिसकती हुयी ... दम तोड़ती हुयी
दफ़न हो जाती हैं मन के किसी बियाबान कोने मैं

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