Wednesday, May 10, 2017

जवाब



मखमली रात को मदहोश करती चंपा की खुशबू 
बारिश की टिप -टिप पे लय देती साँसों की सरगम 
बेपरवाह बिखरे काले रेशम के धागे 

सफ़ेद चादर पे खींचते अरमानो के खाके
.
आज फिर उसने गीले बालों को धो कर खुला छोड़ दिया है
और बेसुध सी खोयी है मन में फूटते सपनो के फव्वारे में
एक अलसायी सी अंगड़ाई लेकर खोली जो आँखें
हंसने लगी कमरे की चारों दीवारे
.
नहीं आज नहीं डरेगी, ना ही चिड़ेगी इनकी हंसी से
और शामिल हो गयी उसी अठ्ठाहस में
रंग डाले एक एक कर सारे कोरे पन्ने
हर पन्ने पर उकेरती मन की तस्वीर
.
कहीं प्रेम और समर्पण , कहीं दर्द की साझेदारी
कहीं उमंगों की महफ़िल, कहीं ज़िन्दगी की जिजीविषा
अवाक थी दीवारे और मूक थी रात
दे रही थी रचनाये उनकी हर हंसी का जवाब 

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